Sunday, 26 August 2018

पता नहीं, 1989 के बाद भी भारतीय वामपंथियों को मार्क्स, लेनिन, स्टॅलिन, ट्राटस्की, माओत्सेतुंग, आदि अधिनायकवादी विचार ही क्यों प्रिय थे। क्या पचास साल किसी राष्ट्र को एक विचारक पैदा करने में, किसी विचार को समझने, समझाने, जानने,जनवाने, मानने, मनवाने के लिए पर्याप्त नहीं होते क्या। क्या जमीनी नेता ज्योतिबसु की उपेक्षा केवल किताबी अथवा मंचीय अथवा विदेशी स्टाइपेंड से पलने वाले नेता या संगठन द्वारा किया जाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित थी।

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