Monday, 27 August 2018

न्यायाधीशीय प्रक्रिया कई कारकों के अधीन होती है। यह एक ओर तो ब्यक्ति या ब्यक्तियों के ब्यक्तित्व, समझ, ज्ञान, प्रशिक्षण, परिवरिश, विश्वास, पूर्वाग्रह, पसन्द, नापसन्द, स्वार्थ, महत्वाकांक्षा, शारीरिक-मानसिक पराक्रम, भनात्मक उफान, उद्वेग के आश्रित  होती है तो दूसरी ओर अनेक नियम , कायदे, मूल्य जो ब्यक्ति, समूह, समाज, सम्प्रदाय द्वारा ब्यक्त या अब्यक्त रूप से स्वीकृत,या अस्वीकृत, घोषित या रद्दीकृत या समाज द्वारा लोकप्रिय अपेक्षा-उपेक्षा, या सामाजिक अथवा शासकीय आकस्मिकता अथवा प्राकृतिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञनिक , नैतिक बाध्यता से बंधी होने के कारण स्वतन्त्र , निष्पक्ष नहीं रह पाती है और फलस्वरूप अपनी उपादेयता खो देती है।

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