प्रकृति द्रौपदी कब तक लुटती रहती कंक्रीट दैत्य के हाथों, अपने जीवन वसन को तो बचा ही नहीं पा रही थी
कैसे, किस किससे बचाती अपनी मानसूनी यौवन की ब्यथा
बांटती, बांचती रही , अपनी दुविधा, आखिर सारा शरीर फुट पड़ा, बह चला अनन्त मवाद से भरा भद्दा पीर भरा घाव।
कैसे, किस किससे बचाती अपनी मानसूनी यौवन की ब्यथा
बांटती, बांचती रही , अपनी दुविधा, आखिर सारा शरीर फुट पड़ा, बह चला अनन्त मवाद से भरा भद्दा पीर भरा घाव।
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