Saturday, 18 August 2018

प्रकृति द्रौपदी कब तक लुटती रहती कंक्रीट दैत्य के हाथों, अपने जीवन वसन को तो बचा ही नहीं पा रही थी
कैसे, किस किससे बचाती अपनी मानसूनी यौवन की ब्यथा
बांटती, बांचती रही , अपनी दुविधा, आखिर सारा शरीर फुट पड़ा, बह चला अनन्त मवाद से भरा भद्दा पीर भरा घाव।

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