उफनना ,उधियाना ,बौरा जाना ,फूलते ही जाना , मस्त हो जाना - यह सब अच्छा तो सभी को लगता ही है - शायद प्रकृति की प्रकृति ही कुछ ऐसी है -- पर यही उर्जा थोड़ी मैनेज की जाती ,तो पुरुषार्थ के नये आयाम बनते नजर आते .अनेक होनहार पुरुषार्थी एक से अधिक होली- दशहरा -दीवाली जज्ब करते हैं , बौराने से तत्काल इन्कार कर देते है और कालान्तर में विजयी हो शेष सारे उत्साह को पूर्णता में सकारात्मक रूप से भोगते है . जो बिना सोचे सामान्य क्रम में बौरा जाते है वे बाद में पश्चाताप-अग्नि में तपते ही रहते हैं .
जो आज जज्ब कर सके -कल सफलता उनका इंतजार करेगी .
पुरुषार्थी प्रवाह में बहते नही , प्रवाह से उर्जा पा उसका संचय कर सफलता तक का मार्ग बनाते हैं .
जो आज जज्ब कर सके -कल सफलता उनका इंतजार करेगी .
पुरुषार्थी प्रवाह में बहते नही , प्रवाह से उर्जा पा उसका संचय कर सफलता तक का मार्ग बनाते हैं .
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