Tuesday, 3 March 2015

मैं बढ़ जाऊँ इतना 
कि पहाड़ बौना दिखे 
आसमान छू सकूं 
समुद्र के तल पर रहूँ 
और दिखूं लहरों पर भी 
बीज में रहूँ खूब
और बात करूं शिखर से
उगते तारों का मीत
दुपहरिया सूरज संग खेलूं

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