Sunday, 1 March 2015



पकता गया वह बचपन
कुछ कच्चा कुछ पक्का
कुछ गन्दा कुछ साफ
कुछ पूरा कुछ हाफ
अनुभव की अदालत में
कुछ दण्ड ,कुछ माफ़
यादों के झरोखें से झांके
कभी गर्व ,कभी शर्म
है सभी की यही कहानी
मैंने तो कहने की ठानी
मेरी कहानी मेरी जबानी
बीता बचपन बीती जवानी .
चमका सका तो चमकाऊंगा
इतिहास नहीं मैं धो पाऊँगा
अब बस पूरी होगी कहानी
बच्चे बोलेंगे नाना -नानी

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