काश ! मैं सुगंध होता- खुशबू होता - दिखता तो नहीं , पर हर जगह रचा-बसा-पसरा होता और आप सभी को मैं प्रसन्न करता रहता . आप की हथेलियों तक मेरी पहुँच होती , आपके मस्तक पर विराजते कुमकुम -चन्दन तक मैं पहुँचता, आपके मन्दिर , अभिसारालय, उपवन , तन-मन तक मैं फैल पाता.
मैं नहीं भी रहता तो मेरा आभास होता , या मेरा अभाव समझ में आता.
मेरे प्रस्थान करने के पश्चात् भी मैं रह पाता.
मैं नहीं भी रहता तो मेरा आभास होता , या मेरा अभाव समझ में आता.
मेरे प्रस्थान करने के पश्चात् भी मैं रह पाता.
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