Saturday, 6 June 2015

बस मैं तुम्हें जीतना नहीं चाहता ,मैं शक्तिशाली होना ही नहीं चाहता , बलशाली होना ही नहीं है मुझे , प्रेममूर्ति ही मेरा इष्ट , लक्ष्य ,गंतब्य है , रहा है , रहेगा - मैं ही तुम्हारा बन कर रहूँ।
जो कुछ दीखता है उसमें बसना नहीं है , रमना नहीं है - तुममें भी रच-बसना नहीं।
तुम्हें जीतने का कोई उपक्रम करना ही नहीं। तुम्हें अपना दास - शिष्य कुछ भी बनाना नहीं।
हाँ मैं तुम्हारे भाव का हो जाऊंगा -तुम्हारा रहूंगा पर मेरा  न तो कोई अधिकार होगा , न ही कोई अपेक्षा - मुझे आपसे कुछ भी मांगने का कोई कारण ही नहीं होगा ,मैं आपका ही हूँ -पर आप पर भार नहीं।
बस ऐसा ही होकर रहना चाहता हूँ।
अपना समस्त उपयोगिता तत्व आप के लिये - यही संकल्प है।

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