विशेषणों के प्रयोग करने में सावधानी और मितव्ययी होना चाहिये। अतिरिक्त उत्साह में प्रयोग किये गये विशेषणों से अनर्थ हो सकता है , अथवा आपका अर्थ ही ब्यर्थ हो सकता है।
विशेषणों की मात्रा , उनका स्थान , उनके सहायक शब्द , जुडी हुई क्रियाएँ , आगे पीछे की संज्ञा-सर्वनाम ही विशेषण का स्वरूप-लक्ष्य -कथ्य , उपादेयता अथवा उपयुक्तता निर्धारित करते है।
इस दिशा में असावधानी अपयश का कारण बनती है , गलत-फ़हमियों को पैदा करती है - दुश्मनी तक ले जाती है।
विशेषणों की मात्रा , उनका स्थान , उनके सहायक शब्द , जुडी हुई क्रियाएँ , आगे पीछे की संज्ञा-सर्वनाम ही विशेषण का स्वरूप-लक्ष्य -कथ्य , उपादेयता अथवा उपयुक्तता निर्धारित करते है।
इस दिशा में असावधानी अपयश का कारण बनती है , गलत-फ़हमियों को पैदा करती है - दुश्मनी तक ले जाती है।
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