Sunday, 7 June 2015

मुझे भूखा रह जाना क्यों  नहीं सिखाया जाता।  मुझे स्वरक्षा  स्वधर्म की शिक्षा जन्म से ही संस्कारों के साथ ही क्यों नहीं दी गयी।
मुझे क्यों नहीं बताया गया की विष्णु की पूजा करने से लक्ष्मी स्वयं  ही आ जाएगी। विष्णु के साथ आई लक्ष्मी शुभकारी होगी और गरुड़ पर आवेगी , विष्णु के साथ आवेगी , विष्णु के चरणों की दासी बन कर आवेगी , कल्याणकारिणी ही होगी।
क्यों मुझे उल्लू पर विराजमान लक्ष्मी की पूजा करने को ही कहा जाता है , और फिर इस चंचला लक्ष्मी के अप्रिय प्रभावों से बचने के लिये साथ में गणेश की पूजा करने को ही क्यों सिखाया जाता है।
क्यों नहीं  यशरूपा विष्णुप्रिया लक्ष्मी मेरी इष्ट हैं।
मैं श्रेयदात्री यशदात्री लक्ष्मी की पूजा करना चाहता हूँ - भोग -विलाश -रूपा लक्ष्मी में मेरी रूचि नहीं है।
मुझे आत्म रक्षक बाँहों से सुसज्जित   जागृत बुद्धि-विवेक युक्त मेरा अपना युवक चित्त -तन -मन हृदय  चाहिए।  भाड़े के सैनिकों के भरोसे मैं नहीं जीना चाहता। केवल धन के लिए काम करने वालों से दूरी ही भली।
मुझे शान से जीने - रहने  की कला सिखाते हो , शान से मरने - जाने की कला  क्यों नहीं सीखते हो। 

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