नफरत , घृणा (ईर्ष्या )को उगने , बढ़ने से रोको। यह सभी को उगने -बढ़ने से रोक देती है। इसका तिरस्कार ही भला। भूल कर भी इसकी आवभगत मत कर डालना। यह अपनों को ही शिकार करती है वह भी वीभत्स तरीके से। एक बार आप तक पहुँच गयी तो उसे उखाड़ना - हटाना -उससे बचना मुश्किल ही नहीं असंभव है।
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