Thursday, 4 June 2015

 याद कर लिए जाने का अधिकार तो उनका भी है न जो गाँव छोड़ परिवार के ही लिए बाहर चले गये , अपने नाम से ही सही , अपने काम से ही सही अपने गाँव को सम्मान तो दिला  ही पाये , अपनों को सम्मान तो दिला  ही पाये - क्या वे केवल ईर्ष्या के ही पात्र होने लायक है - क्या वे अपनों  की याद तक के अधिकारी नहीं है - क्या कभी उनके एकाकीपन  के  बारे में  में शांति से सोचा भी  है- याद तो उन्हें भी माटी की आती ही है पर अब उन्हें तो बस बाहरी  ही समझा  जाता है या बाहर से आ जाने पर उनका बेग , अटैची , पर्स और बैंक बॅलन्स ही देखा जाता है - उनके यश पर तो सभी अपना  हक जताते है पर उनकी पीड़ा केवल उनकी अपनी। और उनके पुरखों की जमीन से उनका रिश्ता तक खत्म करने का प्रयास। काश उनके आने पर हर्ष तो हो जाता , नैनं में स्नेह तो रहता।  
यदि बाहर रहते इन्हें कोई परेशानी हो ही जाती है तो आप हम कितने उनका साथ देते है। 
और जैसे ही वे सफल दिखने लगते हैं तो हम सब। ………… 
उनके पीछे हम सब एक कम्फर्ट जॉन अपने मूल स्थान में बना लेते है और उनके वापस आने की सम्भावना से अपने कम्फर्ट जॉन में ब्यवधान की आशंका से ग्रसित हो जाते हैं। 
कई बार ऐसे लोग अपनों के लिए कुछ करते तो है जो वे कर सकते  हैं पर उसे किसी को बता तक नहीं सकते। 

सोनवाँ के पिंजरे में बंद भईल हाय राम। 
यह कैसा बड़प्पन जहा आप अपनों को अपने होने का एहसास तक नही दिल पाते। 

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