Tuesday, 31 March 2015

जनमना ,उगना ,बढ़ना ,बस इतना ही तो है
पर यही तो सारी उम्र सीखना ,इतना ही तो है

हर कदम जिन्दगी को आँख दिखाते हालात
इन्हीं हालात से रु बरु , बस इतना ही तो हे

इस दरम्यान क्या औ कैसे गुजरा है हम पर
जुबान नहीं ,आँखें कहेगी  बस इतना ही तो है  , 
उगे हम ,जब लगे बदने  तो जरूरत इल्म की हुई
तालीम हमें इल्म हुनर , तमीज़ ,तहजीब की हुई
पर न जाने कहाँ से चले आये ये सारे बेअदब ऐब
जड़ें इनकी जो तलाशी  तो सरजमीं अपनी ही थी .
अब वक्त इन्हें काबू में रखने में लग रहा बेवजह
उसी वक्त आगाह आपने किया होता ,बस इतना 
गलतियाँ हमने ही की है - भरेंगे तो हम ही .
बस पश्चाताप ही हमारे अधिकार में हैं .
शायद दण्ड का परिमार्जन हो ही जाये . मात्रा कुछ कम हो ही जाये .
कौन सी बात तुम्हें पसन्द आई थी ,आज तक मैं न जान पाया
तुमने मुझे अपना बना ही लिया है ,फकत इतना न मान पाया .

हुँकार युग की तो मैं हूँ नही ,झंकार घुन्घुरुओं की न  बन पाया
लक्ष्य आज भी सामने है, प्रत्यंचा चढ़ी धनुष की टंकार बन पाया . 

जिला जज व परिवार न्यायालय के न्यायाधीश ने ग्रहण किए कार्यभार

Publish Date:Mon, 30 Mar 2015 07:36 PM (IST) | Updated Date:Mon, 30 Mar 2015 07:36 PM (IST)
जिला जज व परिवार न्यायालय के न्यायाधीश ने ग्रहण किए कार्यभार
संवाद सूत्र, किशनगंज : सोमवार को मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी की उपस्थिति में किशनगंज के प्रथम जिला जज पद पर रमेश कुमार रेतरिया व प्रथम परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के पद पर श्याम बिहारी राय ने पद भार ग्रहण किए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में अधिवक्ता व न्यायिक अधिकारीगण उपस्थित थे।
विधि संवाददाता, किशनगंज : किशनगंज जिले में नव पदस्थापित जिला जज रमेश कुमार रेतरिया ने कार्यभार ग्रहण करने के दूसरे दिन मंगलवार को विभिन्न न्यायालयों के निरीक्षण किए। इस दौरान जिला जज के आंख के सामने से हाथों में हथकड़ी डालकर एक कैदी को पुलिस के ले जाते हुए देखा। इस समय जिला जज सीजेएम बीएन मिश्रा के अदालत के पास पहुंच चुके थे। मौके पर तुरंत हथकड़ी खुलवा कर पुलिस को सख्त हिदायत दी कि भविष्य में इस तरह की गलती नहीं करेंगे। गौरतलब है कि यह कृत्य उच्चतम न्यायालय व मानवाधिकार आयोग के दिशा निर्देशों का उल्लंघन है। जिला जज सीजेएम न्यायालय से बाहर निकल रहे हैं। सामने व्हील चेयर पर एक बुजुर्ग है। जिसे सुरक्षा कर्मी आगे बढ़ने से रोक रहे हैं। जिला जज श्री रेतरिया ने सुरक्षा कर्मियों से ऐसा नहीं करने का संकेत देते हुए बागवान के प्रति हमदर्दी व्यक्त की। न्यायिक कार्यो के सिलसिले में दूर-दराज से आए बुजुर्ग व महिलाओं के प्रति भी मानवीय संवेदना व्यक्त की और इशारा से काम करते रहने भाव व्यक्त किए। जिला जज श्री रेतरिया ने एडीजे अम्बरीस कुमार तिवारी, एसडीजेएम पुष्पम कुमार झा, मुंसिफ सह न्यायिक दंडाधिकारी आदित्य सुमन, न्यायिक दंडाधिकारी अभिषेक रंजन, प्रवाल दत्ता व रूम्पा कुमारी के न्यायालय के अलावा जिला नजारत, नकल खाने आदि का निरीक्षण कर साफ-सफाई पर ध्यान रखने का निर्देश संबंधित कर्मियों को दिए। इससे पूर्व जिला जज ने न्यायालय परिसर में स्थित कैदी हाजत के अंदर जाकर विचाराधीन कैदियों से अलग से करीब दस मिनट तक मिले। इस दौरान सभी पुलिस कर्मियों को उन्होंने दूर रखा। बाद में जिला जज ने बार एसोसिएशन भवन व जिला अधिवक्ता संघ भवन जाकर अधिवक्ताओं से मिले।
आज मुझे जी लेने दो जी भर कर 
दौड़ लेने दो दम भर कर हांफने तक 
की मैं कल शायद आराम कर  रहा हूँगा 

Monday, 30 March 2015

सेल्स टैक्स प्रेक्तिस्नर से लेकर एक बड़े सपने के दरवाजे तक बार बार झांक आना ,और बहुत से छोटे बड़े सपने  देखना ,उनका सामने प्रत्यक्ष होना , उगना ,कुछ का उगते उगते छिप सा जाना .
उगे हुए ,पूरा हुए सपने  याद नहीं रह पाते ,रुक गया ,झटका खाया ही याद रह जाता है .
खुशियाँ बेपनाह हम भूल जाते है पर उदास होते रहते हैं उन खुशियों के न आने से जो शायद किसी कारण  अपने पुरे सबब में नहीं आये .

संघर्ष और वह भी इतमिनान से .बिना भागे .बिना घबराये .एक एक कदम ,एक एक इंट रखते-सजाते .
जितना चलना लिखा के लाये हो , उतना ही ,वैसे ही चलना तय है ही ,इसके सिवा न कुछ है न होता है 
जितना चलना लिखा के लाये हो , उतना ही ,वैसे ही चलना तय है ही ,इसके सिवा न कुछ है न होता है 
कुछ लोगों के बीच बैठा हूँ . वे सभी अपनी अपनी गा रहे हैं . कुछ अपने पूर्वजों का नाम गा रहे है ,उनका यश गा रहे हैं ,जन-धन -तन को गिन -गिना रहें हैं - मेरे पास तो गिनने को कुछ भी ,नहीं ,सुनाने को भी नहीं ,मैं सोचता रहा- क्या गाऊँ -,क्या सुनाऊं .,क्या दिखाऊं .

जितना चलना लिखा के लाये हो , उतना ही ,वैसे ही चलना तय है ही ,इसके सिवा न कुछ है न होता है 

Sunday, 29 March 2015

कितना भी दौड़ते रह जाओगे ,संतुष्टि कहीं नहीं मिलेगी ,कहीं तो ठहर कर संतुष्टि का वरण स्वेच्छा से स्वयं करना ही होगा .-- यही स्वैक्षिक ठहराव ही मंजिले बनाता है .

Thursday, 26 March 2015

क्या सचमुच मेरी याद आती ही नहीं ,
ऐसा मैंने कौन सा आपका अपकार किया ,
मैंने आपसे क्या माँगा ही है या था
मैनें आपका या आपसे क्या लिया ही
आपने मेरे प्रति  सद्भावना क्यों खो दी
मैनें कौन  सा ऐसा काम किया जिससे मैंने परिवार के यश की हानि की
मैनें कौन  सा ऐसा काम किया जिससे मैंने आपके , या माता पिता के या बाल बच्चों के  यश की हानि की
मैंने कौन सी गलती की ही थी
खैर मेरा आप सभी को प्रणाम , बार बार -क्षमा प्रार्थनामैं अपने सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ आपसभी के लिये प्रार्थना करता ही रहूँगा .
सभी बच्चों को प्यार



वे अपने हैं पर उन्हें हमारी याद भी नहीं आती
हमारी भींगी आँखें करती फरियाद ,नहीं जाती
हम उनके दरवाजे से नाउम्मीद ,पर हटते नहीं
वे हमें काटते रहते ,पर हम हैं की बस कटते नहीं .
हमारे उगने पर भी उन्हें लगता है ख़ुशी नहीं हुई
सारा गाँव आज भी हमारे होने भर से ही बावला .

बस दो ही तरह की ब्यवस्था है -शिकार और शिकारी
दूध देने -दुहाने वाले और दूध पीने -दूहने वाले 
वे जो मांस खाते हैं -और वे जिनका मांस खाया जाता है
एक सेवा लेने वाले -एक सेवा करने -देने वाले
एक सम्मान लेने वाले -दूसरा सम्मान करने वाला
एक सलामी लेने वाला -दूसरा सलामी देने वाला
एक दरवान- दूसरा भगवान
एक भाषण देने वाला -दूसरा भाषण सुनने वाला
एक सदा उपदेशक -दूसरा उपदेष्टा
एक आदेश पाल दूसरा आदेश देने वाला
मजे की बात यह की सेवा लेने वाला , उपदेश देने वाला , दूहने वाला , भागने वाला ,राज करने वाला -ऐसा करना अप्नाधिकार समझता है
और अपमानित होने वाला, दुहने वाला , सेवक उसी को अपनी नियति मान बैठा है 

Wednesday, 25 March 2015

कडुआ ,कठोर ,बेस्वाद बने रहने में मेहनत बहुत थी
शर्म भी आती थी ,पर थी कुछ जीने  की मजबूरियां
हर शख्स की आस ,सांस और विश्वास  की कील था
सरल नरम स्वादिष्ट होता तो उखाड़ ही दिया जाता

उनकी तो पहचान पुरानी रही ,जलवे  सब जानते थे
मैं जानता तो हूँ कि वे बहुत कुछ छिपा कर चलते है
एक तो मेरे पास कुछ् था  ही नहीं,मैं छिपाता ही क्या
दुसरे गर छिपाता  ही रहता, कोई मुझे पहचानता क्या
  
अपना जलवा दिखाया और आदत लगा दी  थी हमने
अब वे हमें दीया लिये हमें हर ओर खोजते फिर रहे हैं  

Saturday, 21 March 2015

 सामान्य धारणा यही रही है कि न्याय का एकमात्र स्रोत तर्क ही है| तर्क विशुद्ध रूप में एक वैचारिक प्रबुद्धता है और भाव विशुद्ध रूप से संवेदना का नैसर्गिक स्पंदन है| धारणागत रूप से इनमें से कोई भी न्याय नहीं है – ये केवल न्याय तक पहुँचाने के साधन हो सकते हैं| (Quoted ) P M Lakhotia -FB
1910 को डा. लोहिया का जन्म एक मारवाड़ी माहेश्वरी परिवार में होता है और वह देश के दलितों व पिछड़ी जातियों को सामाजिक - राजनीतिक भागीदारी दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष के रास्ते पर चलते रहे . वे जाने जाते थे , जाने जाते है और जाने जाते रहेंगे --
मौलिकत
उग्रता
प्रखरता
दूरदर्शिता
विद्वता
राजनैतिक विचार
आर्थिक विचार
सामाजिक विचार
दार्शनिक विचार
दृष्टिकोण
साहित्य
प्रखर लेखन
त्वरित लेखन
चिंतन
राष्ट्र निर्माता
देश-काल सीमा बंध के परे
 स्वाधीनता-सेनानी
विचारधारा
स्वप्नद्रष्ट
लग्न
ओजस्विता
संगठनकर्ता
सुचिता
सादगी
कर्मवीर
विस्तार
विद्रोही
क्रन्तिकारी
अहिंसावादी
आधुनिकतावादी
समतावादी
सत्याग्रही
घोर प्रजातांत्रिक
घोर राष्ट्रवादी
रचनात्मक
प्रयासवादी
सचेत
स्पष्टवादी
चैतन्य चेतनावादी
महान संघर्ष वादी
सप्त क्रांति वादी
असमानता-विरोधी
पिछड़ावादी
जाती-प्रथा भंजक
उपनिवेशवाद-विरोधी
गाँधीवादीनेहरु-कुटिलता विरोधी
अभिजात्य-षड्यंत्र विरोधी
नीजी पूँजी-विषमता-घालमेल विरोधी
अष्ट्र -शस्त्र विरोधी
लोकतंत्री
झुझारू
अखंड-प्रयोग वादी
नवनिर्माण वादी
निरंतर संसोधन वादी
यथास्थिवाद-विरोधी
भारतीय संस्कृति-वादी
आध्यात्मिक
विज्ञान तथा आध्यात्म के संयोगवादी
सर्व-समाज समृद्धि-समर्थक
निर्मम
कठोर
निदानवादी
अजीबोगरीब
सदा हितकारी
गंभीर चिन्तकगंभीर वक्ता
विरोधवादी
कर्मठ
ब्यक्तिगत मर्यादावादी
 क्ल्प्नावादी
प्रतिभावादी
परम्परा-विरोधी
अन्याय विरोधी
धनपतियो के षड्यंत्र के शिकर
अपने ही समाज से उपेक्षित
अपने ही लोगो से प्रताड़ित
अहर्निश-सध्नावादी
कर्मयोगी
आसानी से नहीं समझ में आने वाले
अपने समय से बहुत आगे
आजतक भेद-भाव के शिकार
बौद्धिक इर्ष्या के शिकार
तीब्रतम  प्रतिकारवादी
आर्थिक अन्याय के धुर विरोधी
सामाजिक अन्याय के घोर विरोधी
विश्लेषक
निडर
स्थिर स्वर्थ्वाली प्रभावशाली शक्तियों के क्रोध के शिकार
लगातार निराधार अभियोगों के अभियुक्त
हमलावर
शासक वर्ग के आलोचक
अनुचित कार्य-प्रणाली के तीब्र आलोचक
लीक से हट कर चलने वाले
नित्य प्रवाह मान
प्रचलित प्रवाह के उलटे तैरने वाले
उपेक्षा के शिकार
भ्रामक विरुद्ध लेखन के शिकार
कालजयी
प्रभावशाली
तत्कालीन मीडिया के असहयोग के ,षड्यंत्र के , धन -शक्ति -विरोध के शिकार
नष्ट नही हो सकेगा जो वह ब्यक्तित्व
नष्ट नही किया जा सकेगा उस विचार के प्रणेता
विचार से विचारधारा तक की यात्रा
लेखकीय प्रकाशन तंत्र के षड्यंत्र के शिकार
नेहरु के षड्यंत्र के शिकार

वे और हनुमान प्रसाद जी पोद्दार - एक अपनों द्वारा तिरष्कृत दूसरों ने सर पर बैठाया , दूसरा - अपने समाज में तो स्विकरी तक तो था म्हिमा मण्डित नहीं किया गया और अन्य लोगों ने जन बूझ कर उनकी उपेक्षा की .
यदि समाज इन दोनोके पीछइ खड़ा होता तो हमारे समाज में भी राकृष्ण परमहंस और नेहरु से बड़ी विभूति ये दो ओ स्पष्ट थी .
पर शायद हम विचार नहीं पदार्थ के ही आदि है - गहराई नही छिछले पन के ही आदि है ,शायद हम सतही है , पान पराग  बनाने -खाने वाले लोग हैं ,क्रिकेट खेल का धंधा करने वाले लोग है , अपने ही लोगों द्वारा ,अपने ही पैसे से बनाई गयी फिल्मों में खुद को गलियां दे-दिला कर , खुद को अपमानित करा कर धन कमाने वाले लोग हैं .
शायद हम सम्मान के भूखे हैं ही नहीं - हम बदम की क्त्लियों में ही मगन लोग हैं  हम सम्मान के लिये तप नहीं सकते , भूखे नहीं रह सकते .
 शायद इसी लिये हमारे पूरे समाज के रहते उद्योग -वाणिज्य के क्षेत्र से भारतं रत्न के लिये टाटा को ही चुना जाता है .राष्ट्रिय योजना के लिये टाटा, निल्केरनी को ही चूना जाता है , शायद इसी लिये हम   बिमल जालान  की फोटो घर घर में नहीं लगा पाते क्यों की हम हल्दीराम  ही बने रहना चाहते हैं ,हम भुजियावाला ,ही बना रहना चाहते है , हम फिटकरी किंग ,तेजपत्ता किंग ,ही बने रहना चाहते हैं -





मेरे पोस्ट को कट ,कोपी पेस्ट करें - मुझे एक्नोलेज न भी करें तो कोई बात नहीं .विचार विस्तार तो होगा -प्लीज --- 
वैसे मैं किसी तर्क-आग्रह ,अनुरोध ,बहस का हिस्सा न हूँ , न होना चाहता हूँ .राजनीति ,समसामयिक तथ्य , विधि के तथ्य परक विषय , विवादित रास्ट्रीय विषय ,ब्यक्तिगत विषय , ब्यक्तिगत समस्या - यहसब मेरे इस प्रोफाईल में किसी भी रूप में स्वीकार नहीं है .मैं फोटो या विडिओ सामान्यतः लोड नहीं करता , मैं अपने पोस्ट में सामान्यतः टैग नही करता , सामान्यतः मैं बिना एक्नोलेज किये शेयर या कापी पेस्ट नहीं करता .
यदि विचार विस्तार हो तो प्रसन्नता होगी 
I fail to understand why the Posts of Krishnaraj Rao are not vigorously seconded , shared and discussed .We share every wicket/ball of cricket. 
We comment lavishly on any thing foolish ,provoking ,filthy,obscene but we fail to even endorse the really most serious relevant material generated and floated by him for WE THE PEOPLE .It is not that he posts it stealthily or surreptitiously or cunningly or rarely . He has been posting regularly on several groups profile . He has even posted on Letters to pivotal personalities. He has posted on official portals,channels ,helpdesks,think tank-vessels . He is on record exhorting all including me why his points are not discussed openly. He is openly on record that there is a guised fear-pressur,combination ,unholy alliannce tthat is dettering WE THE PEOPLE .He never used any ill words or ill w ill towards any person or institution .
He is only for the preamble of our national will-national vision document -our CONSTITUTION> He is for justice .He is for Constitutionalism ,. He is only constitutional .
Why we are cool. ?
stillI am diplomatic . May be Why I am coward and coo ?l.
Why I do not see my constitutional duty ?
YES,still I am-not straight . Still I am diplomatic . May be Krishnraj Rao is really correct in all his posts .
जब इस  देश का १९ वर्षीय  युवक कहता  है  नकल  की करो  आश , रब करेगा पास  ,   ------------तो ---------------------------        
 यह तमाचा है पूरी की पूरीू मेंरी मेरी पीढ़ी पर ,मैं इस पर शर्मिंदा हूँ - इस पीढ़ी से अपने किये का दण्ड घोषित करने की  मांग करता हूँ !
जब इस  देश का १९ वर्षीय  युवक कहता  है  नकल  की करो  आश , रब करेगा पास  ,   ------------तो ---------------------------        
 यह तमाचा है पूरी की पूरीू मेंरी मेरी पीढ़ी पर ,मैं इस पर शर्मिंदा हूँ - इस पीढ़ी से अपने किये का दण्ड घोषित करने की  मांग करता हूँ !
नकल से , टैक्स चोरी से , ट्रेन में बर्थ मैनेज करने-करवाने में , घूस देने ,दिलाने और लेने में , मिलावट में , माँ -बहन-बेटी की मर्यादा के खिलाफ शब्दावली का घर तक में घर के ही पुरुषों ही नहीं ,महिला सदस्यों तक द्वारा प्रयोग , बलात्कार ,नकली -सामान बनाने -बेचने , नजराना , पेशी ,रसिदाना ,मामूली ,बक्शीश ,सलामी , डाली चंदा , गिफ्ट ,खुशीसे ,कर्टशी आदि से हम घृणा नहीं करते - आखिर क्यों ?
 पोर्नोंग्राफी से घृणा नहीं करते .
चटकारे लेकर विवरण शेयर किये जाते है .
वजन कम कैसे तौला जाये ,कैश मेमो की जगह एस्टीमेट स्लिप का प्रयो क्यों और कैसे .नकली मोहर कैसे बनती है ,कहाँ बनती है .
चेन पुल्लिंग कब ,क्यों और कैसे . '
परीक्षा में नकल की अकल .
बहाली में अन्दर खाने की अकल .
 कोर्ट में भी अकल और अंकल .
प्रमोशन के पीछे की कहानी .
कचहरी कि अलग  ही अकल , सीमाओं पर कैरियर की अकल , बच्चों -बालिकाओं के कैरियर -लोडिंग -- अनलोडिंग ,हायरिंग , लीज के धंधे के इन्स एंड आऊट्स , रेस ,आखर ,फाटका , ड्रग्स , सिस्को -,कोड लेन्न्ग्वेज ,पेट्रोल पम्प की ,खानों की अकल ,एक्सपोर्ट बीजक की अकल , दोहरे -एकाउंट की अक्ल ,ठेकेदारी की अकल, डाक्टरी पेशे के अन्दर की अकल , यह सब बड़े मनोयोग से सीखे जाने और सीखाये जानी वाली विद्या है .
फब्तियां ,लटके- झटके तो दादा साहेब फाल्के पुरुस्कार वाले सिखा ही देते हैं .
फिक्सिंग, मिक्सिंग किसिंग ,सिटिंग -कब हम इन सबसे घृणा करते हैं - शब्द वीर दिन रात विशेष चित्रों के साथ नख-शिख वर्णन -साहित्य उत्पादित करते रहते है,प्रशिक्ष्ण अपने आप होता रहता है - हम सब कब घृणा करते है -टिकट दे दे -दिला दे , पैसे दे दे -दिला दे - पैसे ले ले- सरकार बना दे - बचा ले -गिरा दे ,खेल में खेल कर ,कोयले में खेल कर ,- इन सब से हम सब कब घृणा करते हैं -- चटकारे लेकर इन सब की कला सीखना कब बंद करते हैं हम .
जब तक हम इनसे घृणा करना नहीं सीखेंगे ,नहीं सिखायेंगे, इन सबसे घृणा वास्तव में हमारे स्वभाव में नहीं आयेगा -तब तक यह सब हम -आप सभी चलाते रहेंगे .
सब के सामने चिल्ला कर नाराजगी दिखा दी  और लगे वह विद्या सीखने,- यह नहीं चलेगा

Friday, 20 March 2015



क्या तुम यही बनोगे .
च्वायस तुम्हारी है

मैंने तो तुम्हे यशस्वी उपयोगी बेशकीमती चिरस्थायी इमारती लकड़ी देने वाले दीर्घायु वृक्ष बनाया है , और तुम हो की के ड्राईंग रूम के इनडोर पौधा या लता होने का जीद धारण कर रहे हो ,
बस इत्ती सी धुप से घबरा कर किसी केड्राईंग रूम में दुबक जाना , कहीं की सोभा की वस्तु भर बन कर रह जाना , अपनी देखभाल के लिये पूरे जीवन किसी दुसरे पर आश्रित रह जाना ,और लता बन श्र खोजना , क्या तुम्हें शोभा देता है.
बस थोड़ी सी लडाई से घबरा गये .
क्या इनडोर प्लांट कों नहीं लड़ना पड़ता .
क्या इनडोर प्लांट को निरंतर नहीं उगना पड़ता
इनडोर प्लांट को भी तो अंतत अपनी जड़ों से ही काम लेना है ,
इनडोर प्लांट को भी अपने पतों से ही काम लेना है .
इनडोर प्लांट को भी अपनी शोभा -उपयोगिता बना कर रखनी ही होती है
इनडोर प्लांट कों अन्य शोभा वाले प्लांट से निरंतर प्रतियोगिता ही बनी रहती है,
उपयोगिता अपनी होती है .कड़ी धुप ,आंधी , तूफ़ान , ठण्ड ,आदि के बीच से अपना जीवन बनाने का अंतत अपना मजा है .
हाँ , पर वह अनजान रास्ता है , कठिन्हाई - पर जाता सम्पूर्ण यश को - थोडा असुरक्षित सा है पर जो लोग बढ़ जाते हैं वे अमर हो जाते हैं .
दूसरा प्रचलित रास्ता है सभी जा ही रहे है ,आईसक्रीम खाते,पण खाते ,सी बीच पर उछलते कूदते नाचते गेट आज या कल बस मिट जाने के लिये ,आये है मजे से जी कर मिट जानही -- कोई जरूरी है सब कुछ कर कर ही जाये - मौज मस्ती वाले भी तो होने चाहिये .
क्या तुम यही बनोगे .
च्वायस तुम्हारी है
मौलिक एवं महान समाजवादी चिन्तक और क्रान्तिकारी गांधीवादी 'डा. राम मनोहर लोहिया' का जन्म दिवस पड़ता है। अब से 103 वर्ष पहले 23 मार्च 1910 को डा. लोहिया का जन्म एक मारवाड़ी माहेश्वरी परिवार में होता है और वह देश के दलितों व पिछड़ी जातियों को सामाजिक - राजनीतिक भागीदारी दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष के रास्ते पर चलते रहे . वे जाने जाते थे , जाने जाते है और जाने जाते रहेंगे --

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  • नष्ट नही किया जा सकेगा उस विचार के प्रणेता 
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  • नेहरु के षड्यंत्र के शिकार 


तीब्र्तम 

क्ल्प्नावादी
गुलाम भारत में ही भगत सिंह की फांसी के केवल चार साल बाद कांग्रेस में रहते हुए समाजवादी मंच की स्थापना किये । उन्होंने नौजवान भगत सिंह के कार्य को आगे बढ़ाया और स्वतन्त्र भारत में 'समाजवादी युवजन सभा' का गठन करके देश के नौ जवानों में समतामूलक व बराबरी पर आधारित समाज की स्थापना का प्रण लिया।
डा. लोहिया ने संभवत: कोई ऐसा क्षेत्र नहीं छोड़ा जिसे अपने विचारों से प्रभावित न किया हो, यहां तक कि उन्होंने भारतीय साहित्य को भी बहुत गहरे तक प्रभावित किया।
स्वतन्त्र भारत में नेहरू के बाद यदि कोई राष्ट्रिय राजनेता 
कहे जाने का अधिकारी बना तो वह डा. लोहिया ही थे .
सामाजिक व आर्थिक गैर बराबरी को मिटाने का था जिसे भगत सिंह ने 'सर्वहारा वर्ग की सत्ता' का नाम दिया था मगर डा. लोहिया इससे और भी आगे बढ़े और उन्होंने नारा दिया कि 'जाति तोड़ो- दाम बान्धो।' इसके समानान्तर ही लोहिया ने पूरे दलित व पिछड़े वर्ग के समाज में आत्म सम्मान भरते हुए सत्ता पर बैठे विशेष तबके को खुली चुनौती देने की ठानी और नारा दिया कि 'राष्ट्रपति का बेटा हो या चपरासी की हो सन्तान- टाटा या बिड़ला का छौना सबकी शिक्षा एक समान।'इस नारे ने पूरे देश में साठ के दशक में जादू का असर किया था और देखते ही देखते डा. लोहिया की पार्टी का प्रतिनिधित्व केरल से लेकर उड़ीसा व बंगाल तक और तमिलनाडु से लेकर असम तक हो गया था। असली सवाल आज के सन्दर्भों में डा. लोहिया की प्रासंगिकता का है।
डा. लोहिया के पिता अध्यापक थे . वे अकबरपुर , यु पी के रहने वाले थे.वे कलकत्ता मे विद्यासागर  कालेज में पोद्दार छात्र निवास में रह कर पढ़े थे .
वे अग्रवाल समाज के कोश से पढने के लिये इंग्लैण्ड- जर्मनी गये थे  .बर्लिन में लीग आफ नेशंस की बैठक  में उन्होंने भगत सिंह की फांसी  का विरोध सिटी बजकर दर्शक दीर्घा से किया और उन्हें सभा गृह से निकाल दिया गया .
मद्रास से कलकत्ता आने के लिये उन्होंने हिन्दू अख़बार में दो लेख लिखे थे जिंससे  उन्हें २५ रूपये प्राप्त हुए


कलकत्ता आने पर उन्हें रामेश्वर दास बिडला के यहाँ सचिव की नौकरी करने का मौका मिला था पर लोहिया यह नहीं किये . कालान्तर में उन्हें जमनालाल बजाज के पास भी ले जाया गया
पर लोहिया अधीन रह कर काम करने वाली मिटटी के बने ही नहीं थे

राजनीती,समाज निति उनका प्रिय विषय था .उन्हें अर्थशास्त्र की गहरी समझ थी .
उन्होंने समाजवाद का अलग दर्शन -विचार दिया .
उनके विचार तत्काल लोगों को समझ में नहीं आते थे .
सत्ता से जुड़े औद्योगिक घराने और उस समय का प्रभावशाली राजनैतिक तबका लोहिया से सहमत नहीं हो पा रहा था  पर लोहिया के प्रखर और अकाट्य विचारों को दबाने में असफल रहा .
लगातार उनकी मुखालफत होती गयी , उनके विरोधी बढ़ते रहे . पर वे दबे नहीं . उनहोंने अपने विचारों को प्रखरता से सभी जगह रखा .
तीब्र विरोध होता था , होगा ,हो रहा है - तब भी वे हतोत्साहित नही हुये .विकट अपमान ,प्रताड़ना ,अस्वीकृति ,उपहास , विरोध भी उन्हें यथास्थितिवाद का विरोध करने से नहीं रोक सके .
नेहरु तथा नेहरु के आस पास के लोगों को वे भलीभांति पहचानते थे इसीलिए वे नेहरु को झट पलटने वाला नट  कहते थे .
गांधीजी लोहिया की जिजीविषा , झुझारुप्न तथा स्पष्टवादित से प्रभावित थे .

लोहिया के ब्यक्तित्व  की यु एस पी उनका अक्खड़पन ,सरलता , सादगी ,दृढ़ता , तथा विचारों के प्रति सजगता थी .
वे कम्युनिस्ट विचारधारा के मूलस्वरूप के विरोधी थे तो राज्य के साथ जुट कर भ्रष्टाचार के भी धुर विरोधी थे .सत्ता के साथ धन का घालमेल उन्हें नहीं सुहाता था .
बस इसी कारण कलकत्ता में उनके विरोधी थे और दिल्ली या कांग्रेस में भी उनके विरोधी रहे .पर देश का बुद्धिजीवी वर्ग उनका मुरीद होने लगा था.
वैसे लोहिया जीवन पर्यन्त एक विशिष्ट संस्कार और संस्कृति की पहचान बन कर रह गये . वे कड़ा बोलते थे , अड़ कर बोलते थे , निडर बोलते थे , बे-लिहाज बोलते थे .वे शोषण के हर आयाम के खिलाफ बोलते थे , वे शोषण करने वाले हर तबके के पर्दे खोल देते थे .उनकी आलोचना इतनी पैनी -तीखी -तीती  होती थी की उनकी आलोचना को पचा पाना सब के बस कीबात नहीं होती थी - उनकी आलोचना को नजर अंदाज करना भिकिसी के बूते के बाहर होता था .उनके अपने भी , उनकी पार्टी के लोग भी डरते थे की यह सख्श तो उन्हें भी नहीं बख्सेगा .
प्रखर विद्वान् ,सभी मूर्धन्य वाचार्कों के सम्पर्क में आ जाने के कारण उनके विचार ब्यापक एवम सर्वकालिक होते थे  उनसे निहित स्वार्थ वाले लोग सहमत नहीं हो पाते थे वे उनका , उपहास उड़ाते , उन्हें उत्तेजित करते , अनावश्यक आलोचना करते। वे अपने क्षुद्र स्वार्थ में उनका विरोध करते , करवाते , कुचक्र रचते ,रचवाते। उनका जम कर विरोध 
होता था . जो उनसे असहमत होते थे वे भी डर तो जाते ही थे की बात में दम है
उनको और उनके विचारों कोजो मान्यता उनकी मृत्यु के बाद मिली वैसी मान्यता कम से कम भारत में तो किसी विचारक को तो नहीं ही मिली . लोहिया-वाद की एक अमरविचार धारा  बह रही है जिसमे आज विलम्ब से ही सही मारवाड़ी समाज के लोग भी सोचने-समझने की कोशिश तो कर ही रहे है .
 आज का यह क्षण  इस बात का गवाह है की लोहिया आज उनके लिये भी प्रासंगिक हो चले हैं  जिनके लिये वे कभी एक पागल -पगलेट , घसका हुआ ,मुन्ह्फट  , बदतमीज ,दल्लाल आदि अदि होते थे .यही वही सख्श है जिसको  कल्कात्ते के सत्यनारायन पार्क के पास सात तल्ले वाली बिल्डिंग के नीचे इसी समाज वालों ने बेइज्जत किया था - नेहरु के चमचों ने और गाँधी के विरोधियों ने .
आजन्म हिन्दुमुस्लिम एकता का यह पैरोकार अपने लोगो की उपेक्षा का शिकार रहा . इनके अपने लोगो ने कुछ लाईसेंस , कुछ कोटा , कुछ अन्य लालचों में पड़ कर इन्हें पनपने नहीं दिया ,लाल-झंडे वालों से भी दोस्ती लोगों ने की केवल लोहिया को नीचा दिखने के लिये . नेहरु का चरण चुम्बन किया कुछ इनकम टैक्स  के प्रावधानों को बनाये रखने के लिये - कोटा राज को चालू रखने के लिये .
लोहिया ऐसे लोगों को खटकते थे .
लोहिया पर बात करने का मतलब है खरा खरा सुनने सुनाने  की ताकत रखना ,  खरा खरा-कड़ा-कड़ा सच बोलने और उसके लिये अदने को तैयार रहना .लोहिया का मतलब है महीनों बाल में कंघी नहीं .लोहिया का मतलब है लिख दिया सो थीसिस, एनालिसिस  , बोल दिया  सो सिद्धान्त,केवल भाषण भर नहीं  , बैठ गये तो धरना या बैठक ,मिटिंग , चल दिये  तो आन्दोलन ,मार्च, जुलुस , विरोध .

वे आंकड़ों के साथ सोते बोते , जागते , बोलते थे - अनर्गल नहीं।  वे पढ़ कर नहीं सोच-शोध-गुन -समझ कर ही बोलते या लिखते थे कई बार तो वे बिना किसी तयारी के मार्च पर घल पड़ते थे -जब वे नकल चुके होते थे तब लोगों को मालूम होता था उनका उद्देश्य  और  निर्णय . और लोग दौड़ पड़ते थे . सच मुच वे अकेले चल पड़ते थे और कारवां बनता जाता था , जब उन्हें पैसों की जरूरत होती थी तो किसी से कागज मांग कर एक आध घंटे में कुछ लिख दिया करते थे और अपने किसी युवक साथी से उसे किसी प्रेस हॉउस तक पहुँच देने की जुगत भिड़ते थे और हर बार उन्हें उनकी उम्मीद से अधिक का चेक मिल जाया  करता था।  उनहोंने अपने लिखने या बोलने का कभी मूल्य तय नहीं किया- प्रेस पत्रिका वाले ने यदि कुछ दिया जो विश्व भर की प्रेस वाले उनके लिखे के आने का इंतजार करते थे और उनके लिख्र को सलामी की तरह मान्यता मिली 
.जब कभी कोई प्रे -पत्रिका -वाले उन्हें कुछ लिखने या बोलने का आग्रह करते थे तो यदि उन्हें पैसों की तत्काल आवश्यकता नहीं होती थी तो वे कहते थे की जब मुझे पैसों की आवश्यकता  होगी तो आपके प्रस्ताव पर विचार करूँगा . वैसे उन्होंने अपने समाजवादी चिंतन और पार्टी कामों के लिय लिख लिख कर जरुरत के अनुसार उसी निमित्त धन पार्टी को दिया . यदि किसी कार्य करता को कोई आकस्मिक आवश्यकता पड़ ही जाती थी तो वे उसे आनन् फानन में कुछ लिख कर देते थे और उसे कहते थे की अमुक्प्रेस वाले को दे दोऔर जो पारश्रमिक दे उसे नगद यबेयरर चेक से ले लेना और अपना काम चलाना .वे अपने साथियों तक से पाकेट तक झडवा लेते थे. अनाज तक बाँध-बंधवा लेते थे . उत्तेर्प्र्देश , बिहार , मध्यप्रदेश ,पंजाब के इलाके में देहातों में , कालेजों में , विद्यार्थियों के बीच वे खासे लोकप्रिय थे . सत्ता के दलाल उन्हें फूटी आँख नहीं सुहाते थे .
दलाल , चाहे वे किसी भी स्तर पर थे उनके एक नम्बर के दुश्मन थे , वे फटके बजी और फारवर्ड ट्रेड के आड़ में या ब्रोकरेज की आड़ में होने वाली आर्थिक गड़बड़ियों का बेदर्दी से पर्दा फस करते थे .
वे अपनों को भी उनकी गलतियों पर अथवा सिद्धान्त के आधर पर त्याग देने वाले थे . उन्होंने एक्स्धिक बार अपनी ही पार्टी के लोगों के खिलाफ ,सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की
उनके बारे में कहना सुनना है तो खुद की आलोचना करना ,सहना सीखना ही होगा.वे बहुत कडवी दवा थे .निर्मम सर्जन थे .पर वे सदैव समाज के दबे -कुचले , अन्याय से पीड़ित लोगों की भाषा ही बोलते थे , वह भी उन्हीं लोगो के लिये . उन लोगो के लिये वे अक्सर अपने ही लोगो से लड़ जाते थे- नेहरु से लड़ना तो उनका यूएस पी था .
लोहिया के विचारों की प्रासंगिकता जांचने समझने का समय जिस समाज को मिल जाये,समझ लीजिये वह समाज स्वस्थ है ,उगने बढ़ने ,स्वरक्षा के लिये तैयार है .
लोहिया अपनों  के बीच में अपनों की  खामियों को बताते थे . वे अपनों की प्रसंसा करने से बचते थे .जो उनके अत्यंत प्रिय होते थे उन्हें भी उनके इस जटिल स्वभाव से दो चार होना पड़ते थे . गांधीजी इस बात को समझ चुके थे .वे जानते थे की यह युवक तर्क एवं विचर की बात करता है , स्वार्थ वश न तो कुटिल बोलता है ,न सोचता है इस लिये कडुआ सच बोलता है . गांधीजी जानते थे यह दूर की सोच कर भविष्य की बात बोलता है

आज लोहिया यहाँ होते तो आप  सभी को उनसे केवल आपकी-उनकी अपनी आलोचना तथा भविष्य  की योजना एक अत्यंत ब्यापक परिदृश्य तथा सामाजिक सरोकार में ब्यवहार  तथा उसके फलाफल  के बारे में कडुवी बात ही सुनने को मिलती .वे विरुदावली गाने वाले भाट  नहीं थे.

उन्हें व्यक्तिगत आर्थिक स्वार्थ के लिये सत्ता तथा धन का छद्म जोट्टा पसंद नहीं था . वे उसके विरोधी थे . शायद इसी कारण कलकत्ता  का वह वर्ग जो उन्हें अपना मैनेजर आदि देखना चाहता थे वह उनके जीवन पर्यन्त उनको पचा नहीं पाया . इस वर्ग के विरोध के बावजूद जब लोहिया जी की स्वीकार्यता बढती गयी , कई बार गांधीजी द्वारा उनके पक्ष और विचारो की प्रशंसा उनके विरोध का कारण बनी  .नेहरु और कलकत्ते  का धनाढ्य वर्ग का षड्यंत्र अधिक सक्रिय हो जाया करता था  .लोहिया जि ने गांधीजी को

इसके कुप्रभाव के बारे में बताया .खास कर स्वतन्त्रता के ठीक पूर्व .
लोहिया को जिस पृष्ठभूमि मे नेहरु के हठ के कारण  स्वतन्त्रता मिली वह पसंद नहीं थी .
लोहिया स्वतंत्रता आन्दोलन के अंतिम क्षणों  के बर्बरीक थे , चश्म दीद गवाह थे  अन्याय या छ्द्म स्वार्थ परक राजनीति के धुर विरोधी .थे 
अंतिम छ्नों में गाँधी  के विरोधी उनके विरोधी हो चले .नेहरु के विरोधी तो उनके विरोधी थे ही , लोहिया साम्यवाद के विचारों में मौलिक त्रुटि  थे इस लिये वे साम्यवाद के भी आलोचक थे 
वे आधुनिक भारतीय राजनैतिक , सामाजिक पारिवारिक परिवेश  के श्याम बाबा थे - हारे के श्याम बाबा -कमजोर के श्याम बाबा  ,कृष्ण को भगवन जानते हुए भी कृष्ण के विरोध में खड़े होने के साहस वाले श्याम बाबा. भारतीय राजनीति में उन्होंने अपना शीश देकर भी अपना स्थान अनंत काल तक सुरक्षित कर लिया .
वे व्यक्ति थे धर्म बन गये , वे विचारधारा बन गये ,वे  अजस्र-धार विचार के प्रणेता हो गये - वे आज पहले से बहुत अधिक प्रासंगिक हो गये तभी तो आज इस हाल में आप जैसे सुधीजन के बीच मैं लोहिया जी को सगर्व याद कर रहा हूँ , स्थापित कर रहा हूँ 
जिस लोहिया जी का नाम सम्मेलन .के एक प्रस्ताव  में जुडवाने के लिये मुझे दो घंटे  मसक्कत करनी पड़ी , जिस नाम पर अंत में मुझे मेरे प्रेरणाश्रोत मोतीलाल जी सुरेका ,नथमल जी डोकानिया , ताराचंद जी ,यह तक की बाद में खुद शंकर लाल जी का ,समर्थन मिला और अंत में रतन सह जी का साथ मिला था आज उनका नाम गर्व के साथ ले कर मैं  धन्य हो रहा हूँ 
धन्यवाद आप सभी अभिभावकों का जिन्होंने मुझे लोहिया जी से जुड़ने का ,आपके सामने प्रस्तुत होने का यस अवसर प्रदान किया .  


कोई तो है जो आज भी इन पुरानी जड़ों को पुष्टिवर्धक जल से सींचे जा रहा है , अब भी कहीं से तों नयी उर्जा आ तो रही ही है न.
अपनी उर्जा का यथोचित सम्मान करते हुए उसका फोकस नई पीढ़ी के प्रति कर देना ही अब इस अवस्था का सम्यक पुरुषार्थ है .
वक्त अब अभी तक लिये का हिसाब कर वापस देने का है .
जो लिया या जो मिला उसके आलावा आभार पक्त करते हुए पुरानों को भी उनके प्रतिदान के लिये कुछ तो देना ही बनता है .
नये की जोभी जैसी भी उम्मीदें मुझसे हैं उसके अनुरूप एवं नये को समझाते हुए उसे भी तोसंतुष्ट करना ही न है .
नये के भविष्य के मार्ग में एक-दो दीये तो मुझे जलाना लाजमी लगता है .
भाई मई तो अपने पुरानों को सश्रद्धा प्रतिदान के लिये तथा अपने नयों को सप्रेम उत्साह्दंके लिये कतिबद्ध हूँ
मिला था जो सनेह आपसे हमे वह कुछ और बढ़ा आगे किया --आपका चला हम आगे चले अब आगे चले को उन्हें आगे चलता किया .
बस यही क्रम चलता रहे

Thursday, 19 March 2015

आज मेरी अपनी जांच फिर एक बार हो जाने दीजिये .मैं आज तक प्राप्त सारे अनुग्रहों , ऋणों की बिना शर्त स्वीकृति रिन्यू करता हूँ .
अपनी आडिट करने का दिन .
अभी अभी मेरे इनबॉक्स में झाँका तो एक नौजवान साथी को मेरे अनुभव यात्रा के कटू वृक्ष के फल को देखते -लपकते ,उछलते पाया. ऐ
मेरे मीत , मुझे उन असहज पलों की याद दिलाने के लिये मैं तो आपको धन्यवाद तक नहीं कह सकता .
हाँ ,मेरी पीड़ा वृक्ष के फल मुझे कैसे भी लगे हो , मैं आशा ही नही विश्वास करता हूँ कि आप सभी के लिये वे सदैव यशकारी, गुणकारी ही होंगे और स्वाद भी उतना तीता अब नहीं रहेगा ,थोडा कसैला, थोडा बेस्वाद तो अब भी हो सकता है -पर हानिकारक नहीं होगा .
मैं आप सभी के यशस्वी जीवन की शुभकामना करता रहूँगा .
क्या सचमुच वजन बात में नहीं , किये या कराये में नहीं , सीखे-सिखाये में नहीं ,बताये- बतियाये में नहीं , खोजे जाने याखोज्वा लिये जाने में नहीं , जीत या हार में नहीं - केवल वजन श्रोत में है - सब जानना चाहते हैं कौन है , था या होगा या चला गया ,या आया ,या आयेगा - किसने कहा , किसने किया , किसने कराया , किसने सीखा , किसने सिखाया , किसने बताया ,किसने बतियाया , किसने खोजा , किसने खोजवाया , कौन था , कौन है , कौन होगा , कौन आया , कौन गया --- बस कौन क्या है यही महत्वपूर्ण है ! 
यही न !!
हम तो काफिरों की सोहबत के भी काबिल न थे, वे हमें पाबन्द नमाजी मोमिन बताते चल पड़े है
कुछ इस कदर पेश आये वो कि हमे गफलत हो चली है की उनसे कहीं कुछ गलती तो नहीं हो रही 
हम न काबिल एहतराम के ,न इश्क हमारे लिये लाजमी , पर वे हमें अपना ही बनने पे थे आमादा
शिक्षा यथास्थितिवाद की विरोधी है ,विचार स्वतंत्र विचरते है , विचार सदा नया रूप, नये गंतब्य , नये लक्ष्य खोजते है ,विचार प्रश्नों के घोड़े पर सवार हो भविष्य के गर्भ में उत्तर तलाशते है, अस्वीकृति का खतरा उठा निडर उत्तर देते हैं
शिक्षा यथास्थितिवाद की विरोधी है ,विचार स्वतंत्र विचरते है , विचार सदा नया रूप, नये गंतब्य , नये लक्ष्य खोजते है ,विचार प्रश्नों के घोड़े पर सवार हो भविष्य के गर्भ में उत्तर तलाशते है, अस्वीकृति का खतरा उठा निडर उत्तर देते हैं
शिक्षा यथास्थितिवाद की विरोधी है ,विचार स्वतंत्र विचरते है , विचार सदा नया रूप, नये गंतब्य , नये लक्ष्य खोजते है ,विचार प्रश्नों के घोड़े पर सवार हो भविष्य के गर्भ में उत्तर तलाशते है, अस्वीकृति का खतरा उठा निडर उत्तर देते हैं
वो शख्स उस से बद्तमीजी कर रहा था, सैकड़ों लोग वहां मौजूद थे। सभी उसे देख रहे थे लेकिन मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आया। फिर भी वो डरी नहीं निडर होकर उस मनचले का मुकाबला किया। उसे मारा और पकड़ कर घसीटते हुए पुलिस के पास ले गई--------
क्या यह हमारा भी दायित्व नहीं था -- साक्षी बोध नहीं था हमारे पास - हम दर्शक भाव वाले शिखंडी भर है -----
तभी तो हम सब कहीं न कहीं कभी न कभी सब कुछ देख कर , दिखाए जाने पर भी सार्वजनिक रूप से कह जाते है -- इसे रोकना हमारे बस की बात नहीं , और हमें लज्जा भी नहीं आती
आलोचना ही विचार को आयु देती है .
आलोचना ही विचार को आयु देती है .
हम जाती हुई पीढ़ी के लोग हैं और देश दरिंदों के हवाले है । एक आशा कि किरण दिखे तो सही । ईश्वर क़ैद में है और वह ग़लत हाथों मे पड़ गया है
जो कहना है वह कह न सकूंगा कभी ,कुछ के लिये अल्फ़ाज नहीं ,तो कुछ के लिये आवाज़ नहीं
पाबन्दी है जो कुछ कहने पर वह तो यूँ भी नहीं कहना ,चलो जुबान बंद ,अब और आवाज़ नहीं .
पर कमबख्त आँखों को लाख समझाता हूँ,उतावली नासमझ है ,छिपा पाती एक भी राज नहीं
कभी रंग लेती है अपने को,कभी बदल देती अपनी शक्ल ,बरसने या बहने से कभी बाज नहीं
फकत नक्शे बनाना मेरी फितरत नहीं , 
जाने के पहले इंट दो चार रख दूं बस इतना ही 
. हो सकता है , वे नींव में दब जाये ,
बुर्ज बनने की मेरी हसरत नहीं

ऋण की बात ही नहीं है. आपके विचारों से प्रभावित होता हूँ तभी post लाइक करता हूँ. आपके कुछ पोस्ट तो इतने प्रभावशाली थे की आज तक याद हैं. ' सर्व धर्म परितज्य मामेकं शरण ब्रज' पर आधारित कुछ माह पहले का आपका पोस्ट अत्यधिक पसंद आया था। शेयर करना चाहा ताकि और लोग लाभान्वित हों पर नीचे की कुछ पंक्तियाँ अधिक नास्तिकतावादी थीं इसलिए नहीं कर पाया ., थोड़ा आस्तिक हूँ इसलिए। एडिट कर री-पोस्ट करने का साहस नहीं हुआ. अगर आपको फील होता है की रूटीन मैंनर में लाइक कर रहा हूँ तो आपके परसेप्शन का को कटाने की हिम्मत नहीं कर सकता क्योंकि आप बड़े भाई हैं, श्रद्धेय हैं, आपकी बात बिना गुण-दोष का विचार किये मानना मेरा कर्तव्य है, मेरा संस्कार है और मेरे लिए लाभदायक भी , लेकिन इतनी गुजारिश जरूर करूंगा की तब आप यह समझें की अहसान के लिए नहीं बल्कि सम्मान और प्यार प्रकट करने के लिए लाइक करता हूँ. . आप कितने संवेदनशील मैं जनता हूँ. यह बात तब भी महसूस कर लेता था जब बहुत छोटा था . मैं भी एक संवेदनशील व्यक्ति हूँ और मुझे 'अहसान' शब्द से चोट पहुंचती है. विशेषकर जब बड़े भाई ऐसा कहें। पिताजी के मन आपके प्रति कितना गहरा, अनुराग और सम्मान था शायद इसे दुहराने की मुझे आज जरुरत नहीं क्योंकि आप उन चीजों से वाकिफ हैं . पर इतना बता दूँ की आप दोनों भाइयों ने शुरुआती दौर में कितना स्ट्रगल किया था वह बताते थे ताकि हम प्रेरित हो सकें और किसी चीज को विकास में बाधक न समझें, वो आपका नाम सम्मान से लिया करते थे। हम जिस टिफिन बॉक्स में स्कूल में खाना कहते थे उस पर आपकी हैंडराइटिंग में हमारा नाम लिखा होता था।। इस तरह ऋणी तो हम आपके है. वह प्यार कैसे भूल सकता हूँ। आज अपनी अपार व्यस्ताओं के बाद भी आप अपने कीमती अनुभव और विचार बांटते है वह समाज सेवा से कम नहीं , क्योंकि सब लोग ऐसा नहीं कर सकते। सब के पास अनुभव है पर शब्द और शैली नहीं , सबके पास निरपेक्ष विचार करने की क्षमता भी नहीं। आप इन सभी मामलों में भाग्यशाली हैं। मैं अपना सम्मान और प्यार प्रकट करता ही रहूँगा। कृपया अन्यथा न लेंगे …… सादर, आपका अनुज Dhirendra Mishra inboxed me on FB messages

You r the support by which i have Grown Each dAy.. and how could i dont celebrate the ur day as mine. wishing you a very Happy Birthday.. May the brightness and fortune be at you side always.. like u av been at my side throughout..
अभी अभी मेरे इनबॉक्स में झाँका तो एक  नौजवान साथी को मेरे अनुभव यात्रा के कटू  वृक्ष के फल  को देखते -लपकते ,उछलते , याद करते , कराते पाया.
 ऐ  मेरे मीत , मुझे उन असहज पलों की याद दिलाने के लिये मैं तो आपको धन्यवाद तक नहीं कह सकता .
हाँ ,मेरी पीड़ा वृक्ष के फल मुझे कैसे भी लगे हो , मैं आशा ही नही विश्वास करता हूँ कि आप सभी के लिये वे सदैव यशकारी  , गुणकारी ही होंगे और स्वाद भी उतना तीता अब नहीं रहेगा ,थोडा  कसैला  ,थोडा बेस्वाद  तो अब भी हो सकता है -पर हानिकारक  नहीं होगा .
मैं आप सभी के यशस्वी जीवन की  शुभकामना करता   रहूँगा .
आज मेरी अपनी जांच फिर एक बार हो जाने दीजिये .मैं आज तक प्राप्त सारे अनुग्रहों , ऋणों की बिना शर्त स्वीकृति रिन्यू करता हूँ .
अपनी आडिट करने का दिन .
शुभेच्छा फलति सर्वदा . दुआ ही बस काम आती है . धन्य हैं वे जिन्हें उनके मित्र याद कर लेते है
आप सभी का यथायोग्य आभार , स्मरण ,नमन ,सस्नेह

Wednesday, 18 March 2015

अब तक निभ गया , आगे भी निभ ही जाऊंगा,
कोई कारण नहीं दीखता संतोष से ही जाऊंगा .

जितना मिला उससे अधिक देने का प्रयास है
कड़ा,खरा,बिना डरे चला ,बोला ,यह एहसास है

पूर्ण नहीं , निष्कलंक नहीं ,यह तो मानता हूँ
पर खुद को खुदसे गन्दा किया नहीं ,जानता हूँ

कीचड़ में जन्मा ,अनगढ़ मैं बढ़ा ,लड़ा ,चढ़ा
पीड़ा  सारी मेरी ,तोह्मत किसीके सर न मढ़ा .

यूँ तो लाल निशान  कभी तुमने भी न लगाया
तुम्हारा दिया सब कुछ बस मैंने सिर से लगाया .

नई राहों पर चला था, गलतियाँ हुई होगी मुझसे
स्वार्थ नहीं था कुछ भी बस भूल हुई होगी मुझसे

जाने के पहले फ़र्ज एक बनता है ,थैंक यु कहने का
दूसरा फ़र्ज भी अता कर ही दूँ ,मेरे सारी कहने का

वक्त तो हो ही चला , अब चला,कब चला,तब चला
यदि अब भी चला तो प्यार आपका , उसी से चला 
Sometimes a pause ,a step backward, a relook , a wait ,  a momentary stop or even a U turn may have amazing  wonderful unexpected positive results .
Wait patiently ,if required and you can afford.
A wait is always worth a wait and better than waste or haste .
Do your best but get not fed up of await.Sometimes a wait may be longer than expected ,but never mess or waste.
You cannot dictate everything every time or all the time .
Even Alexander the great did face the reality .Napoleon was not the exception  .
The Great Greek and those who ruled all the continents saw that time rules ultimately.
Those who did not quit have won and you know those winners.
That is good, you all must know them .
But there were fighters who fought tooth and nail , threw themselves heart and soul , left no stone unturned,burnt all the midnight oil,were perfect to a T but ultimately fell short of a victory ,success ,a win .
May be they failed to wait at some point !
I am afraid ,they could not wait a bit longer and grew restless a bit earlier. Perhaps a relook - they hesitated.
I do not know- they had a fair proposal of U turn and then proceed.
I can only guess .But I am sure ,you must not quit but be ready to change your course ,examine and reexamine your strategy and timing and a await,a pause sometimes  saves all the ruins and brings the brightest sunshines of your life and hope.Many a dreams came true only after a wait when none could really wait but the wait was forced and became boon for the Humanity ,Mankind and we all ..

MUST WAIT IF YOU CAN AND ANOTHER WAIT WHEN YOU CANNOT

Tuesday, 17 March 2015


साक्षी भाव दायित्व उत्पन्न करता है ,समय पर सार्वजनिक रूप से सम्पूर्ण सत्य कहने का दायित्व ,सत्य के साथ खड़े होने का दायित्व -
मुँह बंद नहीं रख सकता साक्षी भाव ,
साक्षी की चुप्पी अपराध है .साक्षी को स्वयं आगे आना होगा

साक्षी सदा सत्य सापेक्ष होता है , साक्षी कर्ताब्याधीन होता है,  साक्षी न  तो मात्र  दर्शक न  ही चिन्तक -विचारक  न ही न्यायाधीश  . साक्षी दर्शक  भाव में जब तक  रहता  है  तब तक  वह  साक्षी नहीं  होता  - साक्षी  का  काम  मंथन  करना  नहीं  है  साक्षी  विश्लेषण  नहीं करता  अपना  भी---  साक्षी  न्याय की  आँख  होता  है  -- यह  एक  कर्तब्य  भाव  है - यह  दायित्व बोध  है -----  आजकल  चिन्तक  ,विश्लेषक , आलोचक ,  दर्शक  तो मिलते  हैं  - साक्षी कम---- साक्षी  को सत्य  के लिये  असत्य  और  तर्क विलास से  लड़ना होता  है----- मिडिया  थोडा  बहुत कभी कभार  साक्षी  भाव से  समाज  के साथ  -सत्य  के  साथ  न्याय के साथ खड़ी  होती  है--- मिडिया  न्याय  या  चिंतन  या विश्लेषण  नहीं करती  -  वह यथारूप  सत्य  -यथार्थ  वर्णन  भर  करती है ------ यही  साक्षी  भाव  है 



जीवन में बहुत कुछ अनुदित ,उत्तराधिकार में मिला ,या छाया -रूप ,प्रतिध्वनि , रूपांतरित , पुनर्निर्मित अथवा केवल पुनरावृत्ति भी होता है . सब कुछ सब समय मौलिक ही हो जरूरी नहीं . मौलिक जैसा आभाष हो तो भी सब कुछ पूर्णतः मौलिक ही होगा -शायद यह अपेक्षा बहुत अधिक है , निराश ही करेगी .
मौलिक नहीं आता है ऐसी बात भी नहीं है -पर पुनरावृत्ति जैसा अधिक रहता है - मौलिक कम होता है .और इसी कम मात्रा में मौलिक के कारण तारतम्य बना रहता है ,टूटता नहीं .
विशुद्ध नये के बार बार हस्तक्षेप से लगातार चलने वाली यात्राएं टूट सकती है .

बस ,जिस मोड़ पर लोग तुम्हें अकेला छोड़ देंगे ,मैं वहीं एक कदम आगे खड़ा मिलूंगा - बस यह एक कदम चल लो ,फिर तो मैं तुम्हारे साथ हूँ .



बचपन सभी का बचपन ही होता है . पचपन भी सभी का पचपन ही होता है .बचपन और पचपन के बीच फासला था ,है और रहेगा .देखने-दिखाने का , समझने -समझाने का , करने का ,कहने का , उफान का ,तूफ़ान का ,दूरी का ,धुरी का , जरूरी का ,मजबूरी का , लाचारी का , आचार का -विचार का .यह फासला या तो भोग कर ,बचपन से पचपन तक चल कर ,गिर पड़ कर , पार करे या बडो के संसर्ग से जान समझ कर .
इस यात्रा के बीच कई पड़ाव होते हैं .उत्सुकता ,जिज्ञासा ,अनभिज्ञता ,नासमझी ,लापरवाही , उद्वेग ,उत्तेजना ,परिश्रम , प्रायश्चित , निन्दा ,अभिनंदन ,पुरस्कार ,आशा ,निराशा ,हिंसा ,स्वीकृति , आवेश ,अवज्ञा ,,आकांक्षा , काम ,क्रोध ,अहंकार ,लोभ ,मोह एवं इनकी तेज अथवा धीमी पड्ती गति,इनका उपर उठना अथवा नीचे गिरना .
बचपन से पचपन की यात्रा लगभग सभी की इसी उहापोह के बीच चलती रहती है .कोई अधिक तेज चल लेता है तो कोई धीरे . किसी की यात्रा में कोई पड़ाव लम्बा खींच जाता है तो किसी की यात्रा में यह पड़ाव छोटा हो जाता है .
कुछ लोग कुछ पड़ावों पर अटक जाते हैं , तो कुछ लोग भटक जाते है , कुछ किसी किसी पड़ाव पर रुकते ही नहीं . पर मोटे तौर पर सभी एक जैसी ही यात्रा किया करते हैं .
यात्रा के विभिन्न चरणों में स्वाभाविक आश्चर्य भी होता है .थकान होती है ,विश्राम को जी चाहता है .उर्जा की खोज होती रहती है . किसी को अतिरिक्र उर्जा मिल भी जाया करती है .
यात्रा के क्रम में दिशा -देश -वेश - खान -पान -ब्यवहार- धर्म -कर्म,निति -अनीति ,उचित -अनुचित भ्रम होता है , कई बार किंकर्त्ब्य विमूढ़ जैसी स्थिति आती है .आपात काल आते है.सामाजिक ब्यवस्था सम्बन्धी प्रश्न पैदा होते हैं .
सभी को इन प्रश्नों से निपटना ही पड़ता है .
बचपन से पचपन की यात्रा को बिरले ही सच सच पूरा खोल कर बता पाते है

Monday, 16 March 2015

काश ! एक नये अस्पताल की छोटी नई शुरुआत ,जगह भी नई -वहाँ में एक नया stheto litman का ,और नया bp इंस्ट्रूमेंट लेकर आता तुम्हारे लिये , तुम्हारा गिफ्ट - मेरा शुरूआती योग - ललकार --- और फीस दे कर दिखाने वाला पहला मरीज भी बन जाता .,पहला प्रेस्क्रिप्सन मेरे नाम का 
---- जानता हूँ बड़ी से बड़ी शुरुआत कभी कोई बस इसी तरह डरते डरते करता है - कुछ समय धैर्य के साथ पिस्ता है ,बैचैन होता है और फिर एकाएक नई जगह जड़ें निकलने लगती है ,नई कोपलें फूटने लगती है --
डाक्टर बी सी राय हो या डा त्रेहन , शुरुआत सभी ने २५-३० की उम्र में इसी तरह ही की होगी .
आप भी करो ,मैं हूँ न .,

आम तौर पर एक उम्र होने के साथ अथवा एक मुकाम पर पहुँचने के बाद लोग सीखना बंद कर देते हैं। 
मेरा मामला कुछ उल्टा हुआ ही है। स्थापित और ऊम्र होने के बाद और समय के साथ साथ साथ सीखने की मेरी चाहत बढ़ती चली गई है। इन दिनों मैं अधिक सीखने लगा हूँ । जरूरत पड़ने पर सिखाने को भी तैयार रहने लगा हूँ . 
नहीं जानता - अब तक कितना ,कैसा और क्या क्या सीखा .
रही बात सीखाने की वह तो आप जाने - मैं कुछ सीखा भी पाऊंगा या नहीं और आप कितना -क्या -क्यों सीख भी पायेंगें .
यदि आप इतना सॉफ्ट स्पोकेन नहीं हूँ ,तीता बोलते हैं ,खरा बोलते हैं , उजड्ड दिखते हैं ,आक्रामक मुद्रा में रहते हैं ,बहुत कड़े खोल में रहते हैं ---- तो यह सब आप जानबूझ कर रणनीतिक रूप से करते है नहीं तो वे सब आपको खा-चबा जायेंगें ,आप अन्दर से नर्म हैं , टेस्टी हैं ,भावुक हैं ,विद्रोही हैं पर आपकी प्राथमिकता अपने को दुश्मनों से बचाए रखने की है - आप जानते हूँ कि आपके स्वाभाविक मित्र न के बराबर हैं, आपको पता है की आपके जैसे नीरीह के स्वाभाविक दुश्मन सभी जगह सभी स्तर पर होंगे ,-- कुछ लोग आपको युज एंड थ्रो,या यूज एंड किल के लिये प्रयासरत रहेंगे .आपकी क्षमता के कारण बहुतों के लिये सदैव एक चैलेंज रहेंगें . आप अपने संयम के कारण किसी के डिक्टेट में नहीं रह पाएँगें . .बस यही सब है जिसके कारण आपके शिकारी आपके चारों और मंडराता रहते है . उनहोंने आपको टारगेट कर लिया है . झपट्टा मारने के लिये न जाने कब से परेशान है . पर आप हूँ की उनके हाथ आते ही नहीं ,
हाँ उन्होंने कहीं आपको आतंकित तो किया ही है .
सार्थक बने रहिये ,स्वरूप बने रहिये . लड़ते भिड़ते रहिये . सर कोबह्र निकाल फेंकिये .
जो आपके प्रति इर्ष्या ,प्रतियोगिता रख अन्याय पर तुले हैं वे आपसे कितने भी बलशाली क्यों न हो ,आपसे बहुत अधिक डरे हुए है .और उनके डर का कारण आपका अभी तक उगते रहना है . आपका होना ही उनके डर का प्रमाण है .
मुझे आप के लिये प्रार्थना करने से कौन रोक सकता है ,मैं भी नही . आपके लिये प्रार्थना आपका नैसर्गिक अधिकार है .बस मुझे प्रार्थना करने दीजिये .मैं इसे स्वीकार करने का आग्रह भी नहीं करता . प्रार्थना करने को मेरा स्वबाव बन तो जाने दीजिये .

तुम्हारे साथ बिताया बचपन ,मेरा अपना ,तुम्हारा ,और तू सब का क्यों अभी और अब याद आ रहा है जब की मुझे पता है वह सब इतिहास बन चूका है - पर नासमझ मन है कि मानता ही नहीं - अपनी ,तुम्हारी ,तुम सब की नादानियाँ ,शरारतें ,वो अड़ना ,वो लड़ना और फिर से खेल खेलना - न रात देखने ,न दिन ,न सही की समझ -न गलत की .
बहुत याद आती है कि हमें झूठ की समझ बहुत बाद में हमारे पूज्यवरों ने सिखाई -समझाई थी .जब तक नहीं समझे थे हमारे पूज्यवर हमे सीधा नासमझ कहते थे . 
बहुत खलता है कि जैसे जैसे हम कुटिल हुए हमारे पूज्य की बांछे खिलती गई . 
वाह रे योग्यता का पैमाना !!!
दो ही विकल्प है - समेटो या बांटों .
चलते चलो या रूक जाओ .
डील क्या चीज में करना है - दो ही विकल्प है - कोमोडिटी या विचार . 
बात किसकी करनी है -यथार्थ या कल्पना की .
तय तुम्हे ही करना है - साथ पाँव मारोगे ,संघर्ष करते रहोगे तो बच सकते हो -शायद न भी डुबो 
-लड़ोगे या भाग जाओगे - बस यही दो तो विकल्प है .
साथ किसके रहना है , साथ किसके चलना है - विक्ल्प बहुत कम है - अब निर्णय तो करना ही है

मैं समझता हूँ आपकी परेशानी . मैं एक साथ शिक्षक और विद्यार्थी दोनों बना रहता हूँ - इनपुट आऊटपुट दोनों साथ चलता रहता है - वन वे ट्रैफिक वालों को परेशानी होती है .
एक ही तार से एक ही समय में उर्जा का आना और जाना सभी के पल्ले नहीं पड़ता - अविश्वसनीय लगता है - 
पर ऐसा होता है , किया जा सकता है ,
आप भी कर सकते है ,
इन्टर मोड , डिलीट मोड़ , रिकवरी मोड़ , सेव मोड , फ़िल्टर मोड ,प्रोग्रामिंग , मॉडरेशन ,डाटा फीडिंग ,डेटा चेकिंग ,अपलोड ,डाऊनलोड ,स्कैनिंग ,दीवायार्सिंग ,फोमतिंग एक साथ किये जा सकते है .टुकड़े टुकड़े सिस्टम ( जीवन ) को फिर से गढ़ने की कोशिश की जा सकती है ,नष्ट हो चुके सिस्टम से भी कुछ तो उपयोगी निकाला ,खोजा , बचाया ,रीकन्स्त्रक्त किया ही जासकता है .
सब कुछ एक साथ कभी भी न खत्म हुआ है न होगा ,
प्रलय भी आ जायेगा तब भी नहीं ,कयामत की रात भी नहीं.
 आम तौर पर एक उम्र  होने के साथ अथवा एक मुकाम  पर पहुँचने के बाद लोग सीखना बंद कर देते हैं।
मेरा मामला कुछ  अलग है।  मेरे साथ उल्टा ही हुआ  है।
स्थापित और ऊम्र  होने के बाद और समय के साथ साथ  साथ सीखने की मेरी  चाहत बढ़ती  चली  गई है। इन दिनों मैं अधिक सीखने लगा हूँ । जरूरत पड़ने पर सिखाने को भी तैयार रहने लगा हूँ।  नहीं जानता - अब तक कितना ,कैसा और क्या क्या सीखा !
रही बात सिखाने की। वह तो आप जाने। मैं कुछ सीखा भी पाऊंगा या नहीं और आप कितना -क्या -क्यों सीख भी पायेंगें। . 
 हर इंसान का एक स्थायी भाव होता है। उम्र बढ़ने के साथ व्यक्तित्व में आए परिवर्तनों के बावजूद वह भाव बना रहता है। श्रेष्ठ स्थायी भाव जिज्ञासा है।  जिज्ञासु  आजन्म छात्र रहते  हैं और आगे भी बने रहेंगे। अपनी जिज्ञासाओं की वजह से वे  हमेशा खुद को नए सिरे से खोजा करते हैं  और सफल होते  रहते हैं । जिंदगी की मामूली चीजों के बारे में भी वे इतनी संजीदगी से सोचते , खोजते , जांचते हैं और  बता सकते हैं कि आप चकित रह जाएंगें । ’ 
तुम्हारे साथ बिताया बचपन ,मेरा अपना ,तुम्हारा ,और तू सब का क्यों अभी और अब याद आ रहा है जब की मुझे पता है वह सब इतिहास बन चूका है - पर नासमझ मन है कि मानता ही नहीं - अपनी ,तुम्हारी ,तुम सब की नादानियाँ ,शरारतें ,वो अड़ना ,वो लड़ना और फिर से खेल खेलना - न रात देखने ,न दिन ,न सही की समझ -न गलत की .
बहुत याद आती है कि हमें झूठ की समझ बहुत बाद में हमारे पूज्यवरों  ने सिखाई -समझाई थी .जब तक नहीं समझे थे हमारे पूज्यवर हमे सीधा नासमझ कहते थे . 
बहुत खलता है कि जैसे जैसे हम कुटिल हुए हमारे पूज्य की बांछे खिलती गई . 
वाह रे योग्यता का पैमाना !!!