मैंने महसूस किया है कि पाने में जितना आनंद है उसको देखने में ,औए जाते देखने में उसका कई गुना अधिक आनंद है .हवा ,पानी ,अनाज यह सब हमारे लिये जरूरी है ,पर कल्पना कीजिये यदि इन सब का केवल आने का ही मार्ग हो ,जाने का नहीं तो क्या होगा .बिजलीके बिना हम नहीं रह सकते .उर्जा जरूरी है.पर यदि बिजली ,उर्जा के जाने का कोई मार्ग ही नहीं रह जाये तो .
आप सभी जानते हैं ,यदि अन्न को भोगने में या भोगे हुए अन्न को त्यागने में विलम्ब होता है तो कैसा लगता है .जिस वायु कोआप साँस के रूपमें लेते हैं उसे छोड़े बिना आप या मैं नहीं रह सकते .जल की भी यही स्थिति है .जिसे ग्रहण करना है उसे त्यागना भी है ,हाँ स्वरूप भेद हो सकता है . ग्रहण किये अन्न जल वायु को आप अपने अन्दर संग्रह कर के नहीं रख सकते .
ठीक इसी प्रकार संस्कार का भी आप संग्रह कर नहीं रख सकते .
सच तो यह है की साँसों के आने जाने ,ग्रहण-त्याग ; अन्न ग्रहण करना तथा उसके बाद नित्य क्रिया में त्याग ,जल ग्रहण -त्याग यह सब आपके स्वभाव की स्थिति बन चुके हैं आप उस प्रक्रिया के बारे में सोचते तक नहीं .
वायु आपके शरीर में आती जाती रहती है आप उसके बारे में सोचते तक नहीं .इसी प्रकार अनंत विचार आपके पास आते हैं ,चले जाते हैं आप उसके बारे में सोचते तक नहीं .अन्न ,जल ग्रहण त्याग के बारे में भी आप सोचते तक नहीं. यह सब आपके स्वभाव का हिस्सा बन चूका है .इनका आना जाना आपकी नोटिस में आता ही नहीं
बस इसी प्रकार संस्कार भी जाते रहते हैं .आते
आप सभी जानते हैं ,यदि अन्न को भोगने में या भोगे हुए अन्न को त्यागने में विलम्ब होता है तो कैसा लगता है .जिस वायु कोआप साँस के रूपमें लेते हैं उसे छोड़े बिना आप या मैं नहीं रह सकते .जल की भी यही स्थिति है .जिसे ग्रहण करना है उसे त्यागना भी है ,हाँ स्वरूप भेद हो सकता है . ग्रहण किये अन्न जल वायु को आप अपने अन्दर संग्रह कर के नहीं रख सकते .
ठीक इसी प्रकार संस्कार का भी आप संग्रह कर नहीं रख सकते .
सच तो यह है की साँसों के आने जाने ,ग्रहण-त्याग ; अन्न ग्रहण करना तथा उसके बाद नित्य क्रिया में त्याग ,जल ग्रहण -त्याग यह सब आपके स्वभाव की स्थिति बन चुके हैं आप उस प्रक्रिया के बारे में सोचते तक नहीं .
वायु आपके शरीर में आती जाती रहती है आप उसके बारे में सोचते तक नहीं .इसी प्रकार अनंत विचार आपके पास आते हैं ,चले जाते हैं आप उसके बारे में सोचते तक नहीं .अन्न ,जल ग्रहण त्याग के बारे में भी आप सोचते तक नहीं. यह सब आपके स्वभाव का हिस्सा बन चूका है .इनका आना जाना आपकी नोटिस में आता ही नहीं
बस इसी प्रकार संस्कार भी जाते रहते हैं .आते
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