गांवों की जो व्यवस्था विकसित की गयी उसके पीछे किसी तोड़ने फोड़ने वाले कुटिल व्यक्ति का निहित स्वार्थ प्रतीत होता है .या तो ऐसे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों में शोषण की घनघोर प्रवृत्ति रही होगी जो शोषण को एक संस्थागत रूप देना चाहते थे आठवे ऐसे व्यक्ति इतने संकुचित दायरे में चिंतन ,मनन या शोध करते थे की उन्हें अपने आस पास के वातावरण तक की शुद्ध नही रहती हो और वे अपने अधिकार अथवा कर्तव्य से पूरी तरह निरपेक्ष हो जाते थे ,संभव है जप ,तप ,चिंतन ,मनन ,साधना ,साधन ,ध्यान ,ये सरे आतंरिक शोध के साधन हुआ करते होंगें और इनका कोई वाह्य आयाम ही नहीं हो ----
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