मेरी तुमसे कभी कोई प्रतियोगिता थी ही नहीं , किसी प्रकार की लड़ाई या संघर्ष का कभी कोई प्रश्न था ही नहीं। तब मेरे हारने या जीतने का विकल्प ही कहाँ उत्पन्न होता है। मैं तुमसे निरपेक्ष हूँ , सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त। तुम्हारे तराजू में मैं तौले जाने के लिये तैयार ही नहीं हूँ। मैं तुम्हें नकारता भी नहीं हूँ। तुम हो ,तो हो। रहो।
अनन्त स्थापनाएँ , व्यक्ति , व्यक्तित्व , मूल्य , चरित्र हैं। मैं सभी से प्रभावित नहीं होता। तुमसे भी नहीं हूँ। फिर भी तुमने मुझे हरा डालने का भ्र्म पाल ही लिया है तो वह तुम्हें मुबारक।
न मैं हारा हूँ न तुम जीते।
पर तुम अपने आप से ही हार रहे हो। तुम्हे तुम्हारी ईर्ष्या हरा रही है।
अनन्त स्थापनाएँ , व्यक्ति , व्यक्तित्व , मूल्य , चरित्र हैं। मैं सभी से प्रभावित नहीं होता। तुमसे भी नहीं हूँ। फिर भी तुमने मुझे हरा डालने का भ्र्म पाल ही लिया है तो वह तुम्हें मुबारक।
न मैं हारा हूँ न तुम जीते।
पर तुम अपने आप से ही हार रहे हो। तुम्हे तुम्हारी ईर्ष्या हरा रही है।
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