Friday, 29 August 2014

कथित गौरवशाली भूत कोई अमृत नहीं जिसे पिला कर मर चुके वर्तमान  को जिलाया जा सके।
कथित गौरवशाली इतिहास कोई संजीवनी नहीं -रामवाण दवा नहीं जिसे पिला कर निष्प्राण हो रहे वर्तमान को बचाया जा सके .भूत भूत ही रहेगा।
वह वर्तमान का स्थान नहीं ले सकता। इतिहास इतिहास ही रहेगा।
वह भविष्य की जगह नहीं ले सकता।
इतिहास हर गुजर रहे पल के साथ और गहराई में चला जाता है। वह वर्तमान के लिये नीवं हो सकता है उससे आगे कुछ नहीं।
नींव के पत्थरों को खोद कर दिखाते रहनेसे , उनकी प्रदर्शनी लगाते रहने से वर्तमान का महल नहीं बन जायेगा। खामखा नींव खोदते रहियेगा , इतिहास ही गाते रहियेगा तो वर्तमान तो हाथ से जायेगा ही , पुरानी नींव भी खत्म हो जाएगी .
भारतीय गांवों में दादे-परदादे के जमानेकी गाथाएँ घुन की तरह गोंवों का भविष्य खाये जा रही है। इतिहास वर्तमान और भविष्य को बांधे हुए है।
इतिहास कितना भी भब्य क्यों न हो , वह इतिहास ही रहेगा .ईजिप्ट का पिरामिड हो या नालंदा का खंडहर .वे वर्तमान के गति निर्धारक मापदंड नहीं होसकते .वे वर्तमान को गति नहींदे सकते  ,वर्तमान के नियंता नहीं हो सकते .
आर्यभट ,वराहमिहिर ,चरक ,गर्ग ,बुद्ध ,महावीर ,कनफ्यूसियस ,वाल्तेयर ,रूसो ,आर्कमिडीज ,न्यूटन ,आईन्स्टीन ,कालिदास ,शेक्सपीयर ,गोर्की ,फराडे ,वाशिंगटन ,टीटो  , नेहरु ,गाँधी -ये सब कितने  भी महान क्यों  न हो ,वर्तमान की परिधि ,सीमा नहीं हो सकते।,वर्तमान या भविष्य को नियंत्रित नहीं कर सकते।
जो समाज इन्हीं में से किसी एक को सर्वथा केंद्र मान कर वर्तमान या भविष्य की रेखाएं खींचने की कोशिश करता है वह एक सर्वकालिक भूल करता है.
इतिहास के प्रति ममता त्यागनी ही पड़ेगी।
इतिहास त्यागा नहीं जा सकता .मेरे या आपके छोड़ देने सेमेरा मेरे इतिहास से और आपका आपके इतिहास से पिंड थोड़े ही छूट जायेगा .
हाँ ममता त्यागी जा सकती है ,वह भी जितनी संभव है .
बेवजह इतिहाससे ममता प्रवंचना को जन्म देती है .
भारत का ग्रामीण परिवेश गौरवशाली इतिहास की नशे की गोली में आज भी बेसुध है ,उसे न वर्तमान की चिंता है न भविष्य की उसके पास कोई योजना !!!

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