Thursday, 7 August 2014

अभी अभी जो भ्रम टुटा है ,वह प्रेम नहीं था ,
अभी अभी जो क्रम  टुटा है ,वह प्रेम नहीं था.

प्रेम की देह नहीं होती ,वह तो विदेह रहता है
प्रेम तो देह में नही केवल वियोग ही सहता है .

प्रेम न तो कर्म है न क्रिया ,यह तो बस भाव है
न रति है ,न विरति ,यह तो भाव का प्रभाव है .

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