जब जब वो सितम जिन्होंने मुझे तपाया , गढ़ा , गुंथा ,गलाया ,मांजा याद आते हैं तो आखे भर आती है - ठीक है कि वह सब कुछ बहुत ही कडुआ था ,शायद अप्रिय ,अरुचिकर भी था- शायद रुलाया भी हो - पर उसी सब ने तो इतना कुछ सिखा डाला - धन्यवाद उन तमाम पीड़ा के श्रोतों -आप सभी का समवेत आभार -आप सब उस रूप में नहीं आये होते तो शायद मैं नहीं हुआ होता , इस रूप में तो कत्तई नहीं .
मुझे आप सभी बार बार याद आते रहोगे ,मैं आप सभी का चिर काल तक ऋणी रहूँगा -आप ही तो हो अक्षय उर्जा भंडार .
अपमान ने बार बार मान की भूख बढाई .अपनी भूख से मैंने भूख के ताप को समझा . दरिद्रता ने क्या नहीं सिखाया .परिश्रम की मजबूरी तो इन्हीं सब की पैदा की हुई थी , तभी तो मैं उस देह्तोड़ परिश्रम तक को झेल सका .तभी तो मैं अंकुर सका . न वह सीलन भरी गुन्साईन दमघोंटू जमीन के अन्दर दबाया गया होता ,उपर से धुप बरसात - पर अंततः सभी के कारण ही जीवन अस्तित्व में आया .
थैंक यु -जब जब बहार आई , और कोई कली खिल आई ,या कोपल फुट आई, मुझे मट्टी में दबे केंचुए की याद आई कि उसी ने धरती जगाई
मुझे आप सभी बार बार याद आते रहोगे ,मैं आप सभी का चिर काल तक ऋणी रहूँगा -आप ही तो हो अक्षय उर्जा भंडार .
अपमान ने बार बार मान की भूख बढाई .अपनी भूख से मैंने भूख के ताप को समझा . दरिद्रता ने क्या नहीं सिखाया .परिश्रम की मजबूरी तो इन्हीं सब की पैदा की हुई थी , तभी तो मैं उस देह्तोड़ परिश्रम तक को झेल सका .तभी तो मैं अंकुर सका . न वह सीलन भरी गुन्साईन दमघोंटू जमीन के अन्दर दबाया गया होता ,उपर से धुप बरसात - पर अंततः सभी के कारण ही जीवन अस्तित्व में आया .
थैंक यु -जब जब बहार आई , और कोई कली खिल आई ,या कोपल फुट आई, मुझे मट्टी में दबे केंचुए की याद आई कि उसी ने धरती जगाई
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