हमारी कविता भावना या भाव का अतिरेक ही क्यों होती है ,यथार्थ को नमक-मिर्च या काव्य कला से इस प्रकार क्यों सजा दिया जाता है कि वह केवल कवि के लिये ,कवि की कवि के द्वारा देखने,समझने और अपनाने योग्य रह जाती है - यथार्थ तो दब ही जाता है .
हास्य कवियों की ब्यंग रचनाये प्रासंगिक तो होती है पर श्रोता या पाठक उन्हें सुन या पढ़ कर न तो सोचते हैं , न सोचने लायक कुछ ग्रहण करते हैं तथा रोने के गम्भीर कारणों केहोते हुए भी ठहाके लगा कर हंस कर गम्भीर मसलों से सुविधा पूर्वक अपने आपको बचा ले जाते हैं.
या फिर यथार्थ के नाम पर नंगई,मजबूरी , निम्न वर्ग की विपदा -विकृति वर्णन तो कविता का विषय होता है पर अभिजात्य वर्ग का षड्यंत्र ,कुटिल विकार ,नंगई का कारण ,मजबूर की मजबूरी की वजह आदि कविता के विषय नहीं होते .
अभी भी वही चाँद , सितारे,आसमान ,झील , नख शिख वर्णन ,शमा ,परवाना ,बसंत ,बहार ,सावन ,नई उम्र को उकसाती ,बहकाती या गहरी निराशा या अकर्मण्यता की और धकेलती अधिसंख्य कविता, गीत या परदे पर चित्रों के साथ बिकती कविता ,तुकबंदी .
अब तो सोशल मिडिया में भी कविता को पढने के लिये एक बाजारू फोटो ५-१० सेकेण्ड देखने को विवश होना पड़ता है .पता नहीं कवि गण अपनी कविता पोस्ट करने केसाथ दूसरों की फोटो भी क्योंपोस्ट करते हैं.
कविता जनोपयोगी तथा ज्ञान वाहिनी हो तो पुरे समाज के लिये ग्राह्य होगी अन्यथा केवल अतिशयोक्ति वर्णन भर रह जाएगी
हास्य कवियों की ब्यंग रचनाये प्रासंगिक तो होती है पर श्रोता या पाठक उन्हें सुन या पढ़ कर न तो सोचते हैं , न सोचने लायक कुछ ग्रहण करते हैं तथा रोने के गम्भीर कारणों केहोते हुए भी ठहाके लगा कर हंस कर गम्भीर मसलों से सुविधा पूर्वक अपने आपको बचा ले जाते हैं.
या फिर यथार्थ के नाम पर नंगई,मजबूरी , निम्न वर्ग की विपदा -विकृति वर्णन तो कविता का विषय होता है पर अभिजात्य वर्ग का षड्यंत्र ,कुटिल विकार ,नंगई का कारण ,मजबूर की मजबूरी की वजह आदि कविता के विषय नहीं होते .
अभी भी वही चाँद , सितारे,आसमान ,झील , नख शिख वर्णन ,शमा ,परवाना ,बसंत ,बहार ,सावन ,नई उम्र को उकसाती ,बहकाती या गहरी निराशा या अकर्मण्यता की और धकेलती अधिसंख्य कविता, गीत या परदे पर चित्रों के साथ बिकती कविता ,तुकबंदी .
अब तो सोशल मिडिया में भी कविता को पढने के लिये एक बाजारू फोटो ५-१० सेकेण्ड देखने को विवश होना पड़ता है .पता नहीं कवि गण अपनी कविता पोस्ट करने केसाथ दूसरों की फोटो भी क्योंपोस्ट करते हैं.
कविता जनोपयोगी तथा ज्ञान वाहिनी हो तो पुरे समाज के लिये ग्राह्य होगी अन्यथा केवल अतिशयोक्ति वर्णन भर रह जाएगी
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