मुझे याद है ,सदैव याद रहेगा , कलकत्ते की बसों के भाड़े के पांच पैसे बचा लेने के लिये बड़ाबाजार से कांकुरगाछी तक की यात्रा के आधे को एक इग्यारह वर्ष का बच्चा पैदल चल कर तय करता क्या भोगता है .
लगभग तीन दिन शुद्ध पानी पर पूरा परिवार !भूखे पेट ही स्कुल के लिये निकल जाना !दिदु महेश्वरी स्कुल के सामने की गली में एक पुरानी किताब वाले की दुकान पर रुक कर उसका कुछ काम कर देना , कभी उसी से पढने के लिये पुरानी किताबे मांगना ,उबले हुए आलू नमक के साथ -यह था भोजन .लगभग पैबन्द लगी पेंट ,दो चार जगह बुरी तरह फटी बनियान .रोज या कुछ अन्तराल पर घर के गहने या जरी के कपड़े बेचे जाने का विचार-विमर्श ,घर आये रिश्तेदार को जली हुई खिचड़ी जो खाई नहीं जा रही थी घर पर आने वाले एक ट्यूटर को बार बार अनुरोध करने पर भी उनका हमें पढ़ने को आना बंद नहीं करना ,लगभग दो अढाई वर्ष तक उन्हें एक अधेला भी नहीं दे पाना ,कलकत्ता के विशुद्धानंद अस्पताल में जेनरल वार्ड में मेरा अपेंडिक्स का आपरेशन ,पिता जी की गंभीर बीमारी ,हायर सेकेंडरी के एक्जाम के बाद रघुनाथ गुत्गुतिया जी के दिए चाँद सैंपल को लेकर तीन दिनों तक घूमना,चन्दन मॉल रारा द्वारा दो पैंटों का एक मात्र आर्डर ,उसके बाद कलकत्ते की पूरी ब्यवस्था तो उठा कर बिहार के एक कस्बे ,मेरा ननिहाल ,औरंगाबाद में आजाना , वहाँ एक खपड़ा पोश हिस्से में दिन गुजरना ,
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