Saturday, 3 May 2014

गीदड़ ,लोमड़ी ,भेड़िये ,सियार ,बगुले के जीन  तथा उनकी प्रचलित चारित्रिक विशेषता अब तो क्वालिटी के आवश्यक इन्ग्रेदियेंट के रूप में लगभग स्वीकार कर ही ली गई है .पगुराने वाले भारवाही जीव, दुधारू जानवर , भोजन के हिस्से बनने वाले जानवर-जीव के जीन तथा उनके प्रचलित गुण अब स्वीकृत अवगुण ,अयोग्यता के पारामीटर बन चुके हैं. मूल्यों की परिभाषा तेजी से बदल रही है ,अब भेड़िये द्वारा बकरे की खाल ओढ़ना धोखा देने का प्रयास नहीं ,स्ट्रेटेजी तथा रणनीति कहलाती है ,सीखी और सिखाई जाती है .

No comments:

Post a Comment