Friday, 2 May 2014

चलना तो भला ,पर चला किसी को नहीं बताना सामाजिक अपराध . चलिये ,बेशक चलिये ,चलना आपका अधिकार भी है और दायित्व भी .पर आपके चले पर ,चलने पर समाज का भी अधिकार है .
कभी ह्वेंसांग ,फाहियान ,इब्नबतूता ,अल-बरुनी ,कोलम्बस,मैगलेन ,शंकराचार्य ,सांकृत्यायन  ,गाँधी चले थे .उन्होंने चला सबको दिखाया ,बताया.बुद्ध चले थे .
दिखाते चले ,सिखाते चले .चलनेका यही सामाजिक धर्म है .
बताते -बतियाते चलो ,सीखते सिखाते चलो, दिखा कर चलो ,समझते समझाते चलो .
चला बताओ , कैसे कैसे चले हो , बताओ ,कहाँ रुके , कहाँ झिझके ,कहाँ ठिठके ,कब कहाँ और क्यों डरे ,कब क्यों और कहाँ ठोकर लगी ,कैसे गिरे ,फिर कैसे उठे ,आगे कैसे बढ़े - यह सब बताना ही चलने को सार्थक बनाता है .
चलने के क्रम के ये अनुभव तुम्हें बाँटना ही चाहिये . तभी तुम्हारा ,मेरा या किसी का भी चलना सही होता है .
असफल यात्रा का भी वृतांत सार्वजानिक किया जाना चाहिए .वह भी सिखा हुआ है, सिखा सकता है उससे भीकुछ जाना जा सकता है .
Invention Disclosure  की तरह अपनी यात्रा बताते चलो .अब यह समाज का दायित्व है तुम्हारे प्रति confidentiality maintain करे ,तुम्हारे चले में से Prior Art खोजे ,मिलाये और उसी चले में से Novelty खोज कर तुम्हें मान्यता दे.कम से कम तुम खुद से तो बेईमान नहीं ही रहोगे .

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