Tuesday, 20 May 2014

विश्व सभ्यता का इतिहास मानवीय कल्पनाओं का क्रमिक विकास तथा उनका साकार होना ही तो है .
अपनी कल्पनाओं को , विचारों को संरक्षित करें , उन्हें उचित पोषण दें ..
समाज का भी दायित्व है की वह नये विचारों ,नयी कल्पनाओं  को प्रश्रय दे ,संरक्षण दे , उन्हें साकार होने तथा करने के लिये आवश्यक साधनों का नियोजन करे तथा सफलता के रास्ते में आने वाली सभी असफलताओं के लिये तैयार रहे .
असफलता के लिये सामाजिक तत्परता ही सफलता ,अविष्कार , खोज , अनुसन्धान  के नये मार्ग प्रशस्त करती है .
असफलता से डरा हुआ समाज सफलता से वंचित रह जाता है ,सम्पन्नता से वंचित रहता है , सदैव दरिद्र रहने को विवश होता है . असफलता की कोख से ही सफलता जन्म लेती है .असफलता का मातृत्व जोखिम हम सबको मिल कर उठाना होगा तभी हमारे आँगन में सफलता शिशुओं के आने का सिलसिला चालू होगा .

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