Saturday, 31 May 2014

खानदानी बड़े लोंगों को कोई बात का बुरा लग जाये , किसी बात से जब वे दुखी हो जाये - उनकी पसंद -नापसंद ,ख़ुशी नाराजगी ,सभी एक खबर है .
और बाकी लोग ? न खबर ,न कोई खबर लेने वाला .
खानदानी बड़े लोग जब और लोगों की खबर लेने चले तो यह है खबर
खबर होने या खबर तक पहुँचने का कोई मौलिक अधिकार तो बाकी लोगों को है नहीं ,न ही राईट
टू बी अ न्यूज या राईट टू बी इन न्यूज  बाकी लोगों को मिला है .यह तो खास लोंगो को ही प्राप्त है .
जब मर्जी वी आई पी बन गये , जब मन किया कह दिया मुझे वी आई पी बनाये जाने के आपके फैसले से बहुत दुःख हुआ .
मैं गिर जाता हूँ और तुम मिल जाते हो .
मैं उठ जाता हूँ तब भी तुम मिल जाते हो .
तुम्हे खोजने निकलते ही तुम मिल जाते हो
मैं गिरा,उठा निकला ,बस ;तुम मिल जाते हो .
I simply try to understand your viewpoint and my job gets done.
I simply try to make you feel comfortable and my job is done.
I simply try to make you feel happy and my job is done.
I get all my jobs done always on time and rightly because you all get it done smilingly.

Tuesday, 27 May 2014

सोना -चांदी ,हीरा -मोती , जमीन -जायदाद ,घर-मकान , गाड़ी -घोडा ; क्या  यही सब है मेरा परिचय ,मेरी पहचान .
इनके बिना क्या मै पूरा शून्य ही हूँ .
आपको केवल आपकी अपनी थाली में परोसी गई खाने की चीजों में से भी उन्हीं चीजों का स्वाद पता चलता है जिन्हें आप खाने का उपक्रम करते हैं .
आपको केवल अपनों से ही वास्तविक प्रेम ,डांट , निंदा , प्यार ,प्रोत्साहन ,उद्दीपन ,प्रेरणा ,उत्तेजना ,सलाह ,सहायता ,सहारा  मिलता है ,क्योंकि वे आपके हैं , दूसरों से मिली इन्हीं चीजों से सदैव अधिक सुरक्षित तथा ग्राह्य ,गुणकारी .
अपनों को बर्दास्त करें ,तब भी जब बर्दास्त नहीं कर पा रहे हों . अपने अपने ही होते हैं - लगभग प्रमाणित शुभचिंतक - खासकर यदि वे आपके माता पिता हों .
माता पिता के सामने अपने अहंकार का त्याग ही भला .माता पिता के सामने क्या मान क्या अपमान .
अपनों के साथ अपनों की तरह घुला मिला ही सही .
Are we addicted to hasty-tasty hurried -premature disproportionate expectations ? Can't we be realistic in our approach and expectations ? Do we really work sufficiently hard,pin-pointed with right strategy keeping in view our expectation-quality wise as well volume wise.?
If you have fair deeds, your name will live after your body
but remember-
in any case name has to leave body,
and
name lives if you have deeds to carry you beyond your body.
Patch-work से काम नहीं चला करता , build- rebuild, innovate, formalise, stabilize करते हुए डेवलप करना होता है . मैं फिर रिपीट करूं -संविधान हमने बनाया ही था जस्टिस के लिये .
Through the constitution we aimed to secure Justice .
Please ensure timely quality Justice at my door-step.
कटिहार , विधि संवाददाता : राज्य विधिक सेवा के निर्देश पर शनिवार को न्यायालय प्रांगण में मेगा लोक अदालत का आयोजन किया गया है। जिला प्राधिकार के अध्यक्ष सह जिला जज रमेश कुमार रतेरिया ने इसकी अध्यक्षता की। इस अदालत में आपसी विवाद से से संबंधित कुल 15 मामलों का निपटारा समझौता के आधार पर किया गया। इस अवसर पर जिला जज श्री रतेरिया ने कहा कि किसी भी अदालत में फैसला तो किया जाता है, किन्तु वह किसके पक्ष में होगा कोई नहीं जानता है किन्तु इस तरह के अदालत में अपना फैसला पक्षकार खुद करते हैं। श्री रतेरिया ने लोगों को मुकदमे बाजी से बचने की सलाह दी। लोक अदालत को ले कुल दो बेंच एवं चार मीडिएशन कार्यालय बनाए गये थे। इस अवसर पर...more »

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कटिहार। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर विभिन्न प्रखंडो व जिला मुख्यालय में पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर कार्यक्रम आयोजित किये गये। विसं के अनुसार, विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर जिला विधिक सेवा प्राधिकार के अध्यक्ष सह जिला जज रमेश कुमार रतेरिया की अध्यक्षता में स्थायी लोक अदालत भवन में जागरूक शिविर का आयोजन शनिवार को किया गया है। सभा को संबोधित करते हुए जिला जज श्री रतेरिया ने कहा कि आम आदमी से ज्यादा जागरूकता के मामले में कभी बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों के बीच है। मछुआरों या खेती करने वाले किसानों से प्रदूषण का खतरा नहीं है बल्कि जो बड़ी-बड़ी कंपनी मछली पकड़ने का काम करती है प्रदूषण वहीं ज्यादा फैलता है। 15 हजार वर्षो..

कटिहार। रविवार को न्यायालय प्रांगण में विधिक सेवा प्राधिकार के पदेन अध्यक्ष सह जिला एवं सत्र न्यायाधीश रमेश कुमार रतेरिया ने दीप प्रज्ज्वलित कर मेगा लोक अदालत का विधिवत उद्घाटन किया। इस अवसर पर जिला पदाधिकारी देवोत्तम वर्मा, प्रथम जिला जज डा. रतन किशोर तिवारी, द्वितीय जिला जज प्रदीप कुमार नियोगी, तृतीय डीपी सिंह, प्राधिकार के सचिव अच्छे लाल यादव, सांसद निखिल कुमार चौधरी त्वरित न्यायालय के न्यायाधीश आरपी सिंह, एसएन सिंह, होसला प्रसाद त्रिपाठी, बीके सिन्हा, मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी राघवेन्द्र मणि त्रिपाठी, एसडीजेएम एन के तिवारी, सब जज तृतीय ज्याति स्वरूप श्रीवास्तव, रजिस्ट्रार तीनत्र, मुंसिफ पीके झा, न्यायिक
भंगा, नसं : जिला विधिक सेवा प्राधिकार के तत्वावधान में लहेरियासराय स्थित कमला नेहरू पुस्तकालय में पारालीगल वोलन्टियर्स का दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर शनिवार को शुरू हुआ। इसका उद्घाटन करते हुए जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकार आरके रटेरिया ने कहा कि इस प्रशिक्षण में कानूनी एवं न्याय संबंधी जानकारी दी जाएगी। इसके माध्यम से समाज में कानून व्यवस्था एवं शांति बनाये रखने के लिए काम करना होगा। पुलिस एवं आम जनता के बीच संबंध की मजबूती पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि पुलिस समाज में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए ही काम करती है। इस कार्यक्रम में जिला व सत्र न्यायाधीश रतेरिया ने कहा कि जनोपयोगी..

Monday, 26 May 2014

 March 6 A Bihar court has awarded death sentence to four persons for killing two men over a land dispute, about three years ago. AdditionalDistrict and Sessions Judge of BegusaraiRamesh KumarRateria, awarded capital.
क्या कुछ बदलेगा ?
बस चौबीस घंटा सातों दिन  न्याय के ऑटोमेटेड आउटलेट  खोल दो भगवन ,अबकी बार तो मेहरबानी कर दस लाख पर पचास इमानदार  मेहनती चतुर त्वरित न्यायाधीश भेज  भगवन .

राजा ,रानी ,महारानी , सेठ ,महासेठ,जे.एन यु -बुद्धिजीवी ,हार्वर्ड ज्ञानी -कम से कम वास्तविक जमीन को शिखर तक उपर उठते देख एक बार आशंकित तो हैं ही -
हाँ लाल बहादुर जहाँ भी होंगे खुश  होंगे
झाड़ू पोंचा करने वाले ,सेवा टहल करने वाले ,सडक किनारे के निरीह लोग और अपना भविष्य तलाशने  वाले युवक सब कुछ समझ कर हिम्मत तो बांधेंगे  ही -
बड़ी सफर का बहुत कुछ अनकहा भी होता है .
मेरी अपनी आशा है की लम्बी यात्रा के अनुभव ,प्रिय,कटु  अप्रियतम अनुचित या अनैतिक जो कुछ हो उसे कोई आगे बढ़ बता देता ,आम कर देता ताकि बहुत  से लोग निराशा से अपने आप को उठाने की कोशिश तो करते .
अभी भी बहुत है जो कुछ किया जाना है ,नई नींव डाली जानी है ,पुराने रास्तों की आपादमस्तक सफाई , छान बीन तथा स्ट्रिम्लाईनिंग की जानी है
रेल मार्ग ,सडकें . नदियाँ ,लगभग सामानांतर ,यदि ये तीनों एक दुसरे के प्रतिस्पर्धी न होकर पूरक हुए होते तो क्या ही अच्छा होता , जहाँ है तीनों हैं ,उपर से हवा-ह्वैया भी - रेल मार्गों का विकास ऐसे  किया जाना चाहिए कि वह सडकों को अधिक से अधिक जोड़े ,सड़कें भी रेलवे स्टेशन नों को जोड़ें इस तरह सडकों का जाल बिछाया जाये . पहले से बनी सडकों का चौड़ी करण ठीक है पर नये राजमार्ग बनाने के लिये साधन पैदा करना आवश्यक है . यातायात , उर्जा कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर पूंजी फण्ड बनाना चाहिए .
और हाँ ,न्याय प्रदायी ब्यवस्था २४ घंटे सातों दिन चालू रहे वह भी पुलिस की तरह की कतिपय स्थितियों में न्याय प्रदायी प्राधिकार को खुद अन्याय का संज्ञान लेकर तत्काल हस्तक्षेप करने का अधिकार ,दायित्व तथा कर्तव्य हो .

Thursday, 22 May 2014

मेरे पास पैसे हैं , मैं चाहूँ जितनी बार ,हर बार , हर बात पर बड़े से बड़े वकील को रखूं , बड़े से बड़े कोर्ट में जाऊं ,तुम कौन होते हो बोलने वाले .
मेरे बेटे के खेलने के लिये गेंद किस रंग की होनी चाहिए इस पर में में तथा मेरी पत्नी में सहमति नहीं है , मैंने इसके लिये तमाम बड़े वकीलों को उनकी पूरी फ़ीस दी है अब वे बड़े से बड़े कोर्ट में अर्जी लगायेंगें , तुम कौन होते हो मेरे और बड़े कोर्ट के बीच बोलने वाले .
और हाँ इस बिंदु पर मेरे और मेरी पत्नी में विवाद किसी षड्यंत्र के कारण तो नहीं इसकी जाँच भी इस देश के २१ बड़े भूतपूर्व न्यायाधिपति करेंगे ,तू इस पर आपत्ति करने वाले कौन हो .
और तुम , तुम्हारी औकात भी है बड़ी अदालत की चौखट तक पहुँचने की .
वहाँ तक जाने का अधिकार दे दिया है न , अब क्या चाहते हो .
इत्ती बड़ी अदालत , इत्ते बड़े वकील क्या तुम्हारे गाव,खेत ,तुम्हारी रोजी-रोटी ,तुम्हारे इलाज ,तुम्हारे बेटे बेटियों की पढाई , तुम्हारी नौकरी , तुम्हारी दुकान ,मकान , में बारे में झगडे सुने ,
है औकात इनकी फ़ीस देने की , बड़ी अदालत तक आने की .
अरे तुम इलाज के लिये शहर तो जा ही नहीं पाओगे , बड़ी अदालत और बड़े वकीलों तक क्या जाओगे.
मेरे पास पैसे हैं , मैं चाहूँ जितनी बार ,हर बार , हर बात पर बड़े से बड़े वकील को रखूं , बड़े से बड़े कोर्ट में जाऊं ,तुम कौन होते हो बोलने वाले
लड़ा तो मैं खूब हूँ,  काश ! तुम ने मेरी विजय की कामना की होती .
जीता या हारा , बात दूसरी है ,
 काश ! नेम प्लेट पर से धुल तो कभी पोंछ दी होती .
That happens in govt jobs where the basic thought is -

never invest in the govt people ,we can carry with what they are even after normal wear and tear or depreciation or stagnation--

the govt has the monopoly of some services through out the country and can survive even without delivering  even the minimum 
मुझे भी चाहिए  आपका हाथ मेरे सर पर ,
याद तो आती ही न है ,जरुरत भी है ही --
मैं गोमुख या कि गंगोत्री नही हूँ ,मैं केवल गंगा हूँ

आज और अभी अभी जाना है ,अनजाने में ही जान गया हूँ
की मैं मात्र गंगा हूँ ,बहना और बहा ले जाना ही मेरी नियति है

गोमुख , गंगोत्री ने मुझे अपने प्रभाव से विवश कर दिया है
और अब मैं मात्र गंगा हूँ , मुझे बस बहना या बहाना भर है ,

मुझ में क्या, क्यों ,कब कैसे बहेगा ,यह तक मैं नहीं जानती ,
मुझे कितना , कैसा ,कहाँ तक बहा ले जाना है ,नहीं जानती .

मै तुम्हारी सुबह से रात तक की तमाम क्रियायों की सारथी
कब मैनें श्रोत बनने का प्रयास किया है मैं सतत निहारती .

Wednesday, 21 May 2014

- जलना ही जिन्दगी है ,रौशनी है हमारा होना ,तुम्हारे रास्तों में अँधेरा नहीं होगा,यही है हमारा होना 
मुझे याद है ,सदैव याद रहेगा , कलकत्ते की बसों के भाड़े के पांच पैसे बचा लेने के लिये बड़ाबाजार से कांकुरगाछी तक की यात्रा के आधे को एक इग्यारह वर्ष का बच्चा पैदल चल कर तय करता  क्या भोगता है .
लगभग तीन दिन शुद्ध पानी पर पूरा परिवार !भूखे पेट ही स्कुल के लिये निकल जाना !दिदु महेश्वरी स्कुल के सामने की गली में एक पुरानी किताब वाले की दुकान पर रुक कर उसका कुछ काम कर देना , कभी उसी से पढने के लिये पुरानी  किताबे मांगना ,उबले हुए आलू नमक के साथ -यह था भोजन .लगभग पैबन्द लगी पेंट ,दो चार जगह बुरी तरह फटी बनियान .रोज या कुछ अन्तराल पर घर के गहने या जरी के कपड़े बेचे जाने का विचार-विमर्श ,घर आये रिश्तेदार को जली हुई खिचड़ी जो खाई नहीं जा रही थी घर पर आने वाले एक ट्यूटर को बार बार अनुरोध करने पर भी उनका हमें पढ़ने को आना बंद नहीं करना ,लगभग दो अढाई वर्ष तक उन्हें एक अधेला भी नहीं दे पाना ,कलकत्ता के विशुद्धानंद अस्पताल में जेनरल वार्ड में मेरा अपेंडिक्स का आपरेशन ,पिता जी की गंभीर बीमारी ,हायर सेकेंडरी के एक्जाम के बाद रघुनाथ गुत्गुतिया जी के दिए चाँद सैंपल को लेकर तीन दिनों तक घूमना,चन्दन मॉल रारा द्वारा दो पैंटों का एक मात्र आर्डर ,उसके बाद कलकत्ते की पूरी ब्यवस्था तो उठा कर बिहार के एक कस्बे ,मेरा ननिहाल ,औरंगाबाद में आजाना , वहाँ एक खपड़ा पोश हिस्से में दिन गुजरना , 

Tuesday, 20 May 2014

Post independence generation We The People- please be only law friendly. Let only constitutionalism prevail, Let all of us see that law is followed by all of us.
Chartered Accountants,Cost accountants,Lawyers,please change the pre independence notions.
Get punished ,and pay taxes as per law.
Do not cook documents,please ! Do not only argue to destroy law and legal structure. Argue to save law and legal structure..
हमारी समस्या चार - (we have four problems )
 दंगा ( Violence and lawlessness )
नंगा ( Poverty, Perversity )
चंगा ( Health, healthy )
और
गंगा  (Water Resources,environment )
Manage them and rest will follow
सावन ,बहार , फागुन ,डेटिंग ,मीटिंग  के चक्कर में मत उलझों ,
उन्हें अपनी जगह अकेले छोड़ दो ,
उनसे  लड़ने- झगड़ने की जरूरत नहीं है
 पर उन्हें न्योता देकर बुलाने की भी जरूरत नहीं है ,
उनसे दोस्ती या दुश्मनी भी नहीं करनी है ,
वे जहाँ जैसी है रहने दो ,
जैसे उनका मन करे आने-जाने दो ,
उठने बैठने दो
उनसे बहुत  माथा पच्ची नहीं करनी है .
 अभी आज नही , कल मिलते हैं -यही अंदाज रहे
. बस इतना ही, बहुत हो गया यह ध्यान रखना है .
हाँ  सावन ,बहार , फागुन  ,डेटिंग ,मीटिंग के बुलाने पर भी  अभी नहीं जाना  है,
अगली बार देखूंगा , प्लीज .
हर कल्पना कब सच होती है ,
पर कल्पना के बिना कभी कुछ सच हुआ है क्या ?
कल्पना करो ,उसे आँखों में बसाओ , उस में आकृति आने देने के लिये अपना खून -पसीना दिन रात डालो ,पर यदि इन सबके बाद भी कुछ न हासिल हो तो फिर से नई कल्पनाओं के साथ वही क्रम दोहराना.
सफलता तुम्हारी होगी ,
असफलता का दोष मेरे पर मढ़ देना ,
असफलता के दौर में लगे साधनों का देनदार मैं सदा रहूँगा .
बस ध्यान रहे असफलता का कारण तुम्हारा आलस्य न बने ,तुम्हारा उन्माद या अतिरेक न हो ,
शेष सारा मेरे ऊपर छोड़ कर लग जाओ .
विश्व सभ्यता का इतिहास मानवीय कल्पनाओं का क्रमिक विकास तथा उनका साकार होना ही तो है .
अपनी कल्पनाओं को , विचारों को संरक्षित करें , उन्हें उचित पोषण दें ..
समाज का भी दायित्व है की वह नये विचारों ,नयी कल्पनाओं  को प्रश्रय दे ,संरक्षण दे , उन्हें साकार होने तथा करने के लिये आवश्यक साधनों का नियोजन करे तथा सफलता के रास्ते में आने वाली सभी असफलताओं के लिये तैयार रहे .
असफलता के लिये सामाजिक तत्परता ही सफलता ,अविष्कार , खोज , अनुसन्धान  के नये मार्ग प्रशस्त करती है .
असफलता से डरा हुआ समाज सफलता से वंचित रह जाता है ,सम्पन्नता से वंचित रहता है , सदैव दरिद्र रहने को विवश होता है . असफलता की कोख से ही सफलता जन्म लेती है .असफलता का मातृत्व जोखिम हम सबको मिल कर उठाना होगा तभी हमारे आँगन में सफलता शिशुओं के आने का सिलसिला चालू होगा .
खुशामद  तथा प्रशंसा भी उसी को पचती है जो उसका अभ्यस्त है . यह अभ्यास अक्सर विरासत में ही मिलता है .
जो विरुद के लोभ में या प्रशंसा के लिये नहीं ,दायित्व या कर्तव्य बोध से काम करना भर ही जानते  हैं वे सफलता का श्रेय भी ग्रहण नहीं करते .
मैंने १०-२० साल बच्चों -युवकों को शान से चरण स्पर्श करवाते देखा है यद्यपि की वे सामान्य बालक मात्र होते हैं  और उनके सामने ही उनको तमाम आदर सूचक शब्दों से संबोधित किया जाता है  जब कि  ऐसा किये जाने का कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं होता . पर वे ऐसी परिस्थति में सगर्व बैठे  रहते हैं - शायद विरासत का अहंकार ही खुशामद या प्रशंसा को पचाने की ताकत देता है .

Saturday, 17 May 2014

आग्रह पूर्वक समीक्षक सदैव आमंत्रित हैं 
हमारी कविता भावना या भाव का अतिरेक ही क्यों होती है ,यथार्थ को नमक-मिर्च या काव्य कला से इस प्रकार क्यों सजा दिया जाता है कि वह केवल कवि के लिये ,कवि की कवि के द्वारा देखने,समझने और अपनाने योग्य रह जाती है - यथार्थ तो दब ही जाता है .
हास्य कवियों की ब्यंग रचनाये प्रासंगिक तो होती है पर श्रोता या पाठक उन्हें सुन या पढ़ कर न तो सोचते हैं , न सोचने लायक कुछ ग्रहण करते हैं तथा रोने के गम्भीर कारणों केहोते हुए भी ठहाके लगा कर हंस कर गम्भीर मसलों से सुविधा पूर्वक अपने आपको बचा ले जाते हैं.
या फिर यथार्थ के नाम पर नंगई,मजबूरी , निम्न वर्ग की विपदा -विकृति वर्णन तो कविता का विषय होता है पर अभिजात्य वर्ग का षड्यंत्र ,कुटिल विकार ,नंगई का कारण ,मजबूर की मजबूरी की वजह आदि कविता के विषय नहीं होते .
अभी भी वही चाँद , सितारे,आसमान ,झील , नख शिख वर्णन ,शमा ,परवाना ,बसंत ,बहार ,सावन ,नई उम्र को उकसाती ,बहकाती या गहरी निराशा या अकर्मण्यता की और धकेलती अधिसंख्य कविता, गीत या परदे पर चित्रों के साथ बिकती कविता ,तुकबंदी .
अब तो सोशल मिडिया में भी कविता को पढने के लिये एक बाजारू फोटो ५-१० सेकेण्ड देखने को विवश होना पड़ता है .पता नहीं कवि गण अपनी कविता पोस्ट करने केसाथ दूसरों की फोटो भी क्योंपोस्ट करते हैं.
कविता जनोपयोगी तथा ज्ञान वाहिनी हो तो पुरे समाज के लिये ग्राह्य होगी अन्यथा केवल अतिशयोक्ति वर्णन भर रह जाएगी 
अपमानित हो या झुक जाने से जो मिले ,वह त्यागा ही भला .मान सहित अधिकार मिले तो भला , या फिर मान-अधिकार के लिये मरा ही भला
जब मैनें अपने लिये अपना ईमान नहीं बेचा और परमात्मा ने सब कुछ दिया ही है , मेरे से कभी कुछ लिया तो नहीं ही है तब तुम्हारे लिये मैं क्यों अपनी नजरों से गिरुं . मैं क्यों गंदगी में उतरूँ
लड़ पड़ोसी, दीद रख .
लड़ने के क्रम में दोस्ती के रास्तों को बंद कर देने से आगे चल कर एक दुसरे के दरवाजे तक जाने में संकोच होता है , आँखें बार बार शर्मिंदा होती है ,मन अपने आप को ही कचोटता रहता है ,
सम्मान का केंद्र ,सम्मान के योग्य होना एक बात है ,
श्रद्धा का केंद्र ,श्रद्धा के योग्य होना एक बात है
प्रेम का केंद्र ,प्रेम के योग्य होना एक बात है
सम्मान ,श्रद्धा ,और प्रेम का केंद्र एवं उसके योग्य प्रमाणित होना , हो-जाना एक बात है .
इन सबके ऊपर अपना होना ,अपना हो जाना , अपना बना लेना एक बात है .,अपना रहना ,अपना बने रहना सबसे बड़ी बात है .
पुरातन का त्याग तो प्रकृति करती ही रहती है ,लगातार चुपचाप ,यह क्रम कब रुका है , आगे भी कब रुकेगा , बस चलते चलो परिवर्तन के साथ .
बिना अधिकार के सारी जिम्मेवारी ओढ़ लेना बेवकूफी है . कुटिल लोग भाड़े पर ऐसे बेवकूफ लोगों को खोज ही लेते हैं , 
जिम्मेवारी दूसरों पर मढ़ अधिकार खुद ले उड़ते हैं .
सफलता की मजदूरी भर दे देते हैं और श्रेय तथा उसका फल खुद ले उड़ते हैं .
असफलता की मजदूरी तो नहीं ही मिलती , सारी जिम्मेवारी,अपमान ,आलोचना बेवकूफों के माथे मढ़ कर कुटिल लोग अपना दामन बचाने में सफल रहते हैं .
योग्य लोग अधिक बेवकूफ होते हैं या उन्हें अधिक सहज ढंग से बेवकूफ बनाया जा सकता है .
खानदानी यशस्वी या अयोग्य धनी के लिये कुटिलता एक अस्त्र तथा बेवकूफ योग्य इमानदार लोग एक मजदूर से अधिक कुछ नहीं होते
स्वयंचेता लोगों के लिये सेक्रेटरी टाइप का काम है ही नहीं , 
जो खुद अपने विवेक से चलते हैं , चल सकते हैं ,आगे आगे चलने का खतरा उठा सकते हैं , वे दूसरों के द्वारा हांके जाने के लिये सहज तैयार नहीं होते .
कुछ लोग स्वयं चेता ऐसे लोगों को सेक्रेटरी बना कर रखने में अपनी सफलता समझते हैं .
ऐसे लोग अपना तो अपकार करते ही हैं ,समाज का भी अपकार करते हैं और जिसे वे इस प्रकार पंगु बना कर सेक्रेटरी के रूप में प्रयोग करने में सफल हो जाते हैं उसका भी अपकार करते हैं ,
If you do not respond, how and why you should expect a response?
हमारी कविता भावना या भाव का अतिरेक ही क्यों होती है ,यथार्थ को नमक-मिर्च या काव्य कला से इस प्रकार क्यों सजा दिया जाता है कि वह केवल कवि के लिये ,कवि की कवि के द्वारा देखने,समझने और अपनाने योग्य रह जाती है - यथार्थ तो दब ही जाता है .
हास्य कवियों की ब्यंग रचनाये प्रासंगिक तो होती है पर श्रोता या पाठक उन्हें सुन या पढ़ कर न तो सोचते हैं , न सोचने लायक कुछ ग्रहण करते हैं तथा रोने के गम्भीर कारणों के होते हुए भी ठहाके लगा कर हंस कर गम्भीर मसलों से सुविधा पूर्वक अपने आपको बचा ले जाते हैं.
या फिर यथार्थ के नाम पर नंगई,मजबूरी , निम्न वर्ग की विपदा -विकृति वर्णन तो कविता का विषय होता है पर अभिजात्य वर्ग का षड्यंत्र ,कुटिल विकार ,नंगई का कारण ,मजबूर की मजबूरी की वजह आदि कविता के विषय नहीं होते .
अभी भी वही चाँद , सितारे,आसमान ,झील , नख शिख वर्णन ,शमा ,परवाना ,बसंत ,बहार ,सावन ,नई उम्र को उकसाती ,बहकाती या गहरी निराशा या अकर्मण्यता की और धकेलती अधिसंख्य कविता, गीत या परदे पर चित्रों के साथ बिकती कविता ,तुकबंदी .
अब तो सोशल मिडिया में भी कविता को पढने के लिये एक बाजारू फोटो ५-१० सेकेण्ड देखने को विवश होना पड़ता है .पता नहीं कवि गण अपनी कविता पोस्ट करने केसाथ दूसरों की फोटो भी क्योंपोस्ट करते हैं.
कविता जनोपयोगी तथा ज्ञान वाहिनी हो तो पुरे समाज के लिये ग्राह्य होगी अन्यथा केवल अतिशयोक्ति वर्णन भर रह जाएगी .

Friday, 16 May 2014

मौन रह कर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है . लोग कम शब्दों या बिना शब्दों के संवाद को भी बखूबी समझते हैं .मौन को समझने वाले अधिक हैं ,मौन संवाद करने वाले कम .
Message -77 -India never tolerates dictatorship 
Message 2014- India never tolerates Insults
The hero of 2014- THe unspoken revolt by one man who kept mum even after insults and ultimately taught a lesson to those who insulted him at every point.
He silently allowed all his men to commit suicide

Thursday, 15 May 2014

कलम धारण करने वाले लेखक ,कथाकार ,कवि ,गीतकार समीक्षक ,आपसभी कलमधारी महावीर हैं ,आप सब की  कलम महाप्रतापी है ,यह और अधिक यशस्वी हो।  आप महान रचनाकार है ,सर्जक हैं , निर्माता हैं.
इसी प्रकार अन्य वार्ताकार,कलाकार  आप के हाथ पेन्ट -ब्रश , छैनी ,हथौड़ा , कैंची ,कूची ,गैंता ,कडाही ,करनी ,माइक ,मंच ,   क्लाश , किताब ,स्क्रिप्ट , दर्शक ,पाठक ,श्रोता सब कुछ है।
तब आप लोग विकार, विकृति , विध्वंस ,ब्यथा , निराशा , तंज , ब्यंग ,श्रृंगार , भयानक , वीभत्स ,उत्तेजक  और वह सब भी अतिशयोक्ति भरा , आदि ही अधिक मात्रा में जाने अनजाने हर वक्त परोसते ,उगलते , गढ़ते क्यों दीखते हैं। ऐसी क्या मजबूरी है।   क्या सकारात्मक सुरुचिपूर्ण निर्माण का कोई ग्राहक ही नहीं है। 

Wednesday, 14 May 2014

यदि छिपाने के लिये कुछ नहीं है तो डरने के लिये भी कुछ नहीं - बस इसी कारण सर झुकाने के लिये भी कुछ नहीं ,और तब खुशामद के लिये भी कुछ नहीं .
यह निर्भीक अदा बहुतों को रास नहीं आती .पर आप निश्चिंत रहते हैं .
यही होते आया है - पुरुषार्थी खाम खाह हताश अथवा निराश नहीं होते ,न ही तात्कालिक लाभों के लिये अपना रास्ता छोड़ते हैं,  न बदलते हैं - तात्कालिक चमक दमक के लिये अनुचित समझौते नहीं किया करते --
उपहास तथा विरोध के ताप से तप कर ही नये मूल्य स्थापित होते आये हैं ,
नये को स्वीकार करने में झिझक भी होती है क्यों कि पुराने को जाना तो पड़ेगा ही . पुराना न जाना चाहता है न नये  को उदार भाव से स्वीकार कर पाता है .
My minehood is not negotiable.  It is exclusively mine and shall always remain mine.
 I care for the glory of minehood after I leave and not only the glitter when I have to live.
I shall live a lively life after I have left and gone.
Today is not the last day.
An unending chain of tomorrows will examine me and I want to pass that examination by the next generations to come.
To earn a glitter or shine for a day, I cannot sacrifice my minehood and get condemned by tomorrows.
बात में दम है - सचमुच केवल इमानदार होने से , योग्य होने से ,संघर्ष करने से ,लड़ने से या किसी चीज के अधिकारी होने से ही कुछ नहीं हो जाता- यहाँ समाज में एक भयंकर जोट्टा बना हुआ है ,एक काकश काम कर रहा है ,दुराभिः संधि है - अहो रूपम , अहो ध्वनिम , मै तेरा -तू मेरा ,सब कुछ छोड़ कर मेरी शरण में आ जा ,मैं तेरे सरे पाप पर पर्दा डाल  दूंगा, ,बस मेरे गुट में आजा ,मेरा हो जा , मैं तुम्हें सारे कष्टों से बचा लूँगा बस जैसे  मैं कहूँ वैसा करते चल .
इंज्न्क्सं  दिए जाने अथवा नहीं दिए जाने की स्थिति पर विचार करते समय न्यायालय को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि मौलिक अधिकार के हनन ,घात ,हानि की स्थिति की व्याख्या अपूर्णीय क्षति के रूप में कर सके .
इस कार्य के लिये प्रारंभिक स्तर के न्यायालयों पर समाज को विश्वास करना ही होगा..
किसी भी व्यक्ति ,संस्था ,निकाय , सरकार ,अधिकारी के द्वारा मौलिक अधिकारों पर आघात की स्थिति की रक्षा को निम्नतम न्यायालायीय व्यवस्था के द्वारा संज्ञेय बनाया जाना चाहिए तथा उसी स्तर पर पुनः जाँच ,यदि आवश्यक हो कि  व्यव्स्था की जानी चाहिए .प्रत्येक विवाद को अनंत मुक़दमे बाजी के लिये मुक्त नहीं छोड़ा जाना चाहिए.
मुकदमे योग्य विवादों की जाँच हर स्तर करने की व्यवस्था होनी चाहिए. अपने साधनों के बलपर किसी को भी राष्ट्रिय न्यायिक संसाधनों के अनुचित दोहन ,उपभोग अथवा जमाखोरी की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये . इसी प्रकार सभी व्यक्तियों की पहुँच राष्ट्र के न्यायिक संसाधनों तक सुनिश्चित की जानी चाहिए . न्यायिक संसाधनों के अनुचित अथवा गैर अनुपातिक उपभोग पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिए.
राष्ट्र के न्यायिक संसाधन भी राष्ट्रिय संपत्ति हैं . उन दुरूपयोग करना अपराध घोषित किया जाना चाहिए.राष्ट्रिय न्यायिक समय की बर्बादी रोकी जानी चहिये.
ग्रास रुट ज्यूडिसियरी को सी पी सी आर्डर ३९ रुल १ या २ का प्रयोग अधिक करने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिए, इसके लिये निचले स्तर पर न्यायलय को अधिक भयमुक्त तथा जिम्मेवार बनाना चाहिये ,मौलिक अधिकारों की रक्षा में भी ग्रासरूट न्यायालयों की बड़ी भूमिका हो , यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए , निचले स्तर पर कार्यपालिका को न्यायालय आदेशों के प्रति अधिक जिम्मेवार बनाना होगा , 
और इस प्रकार ग्रासरूट जनता को उसके डोर स्टेप पर ही अधिकार,उनकी रक्षा तथा न्याय , सब मिल सकेगा .
निचले स्तर पर शोषण कम हो जायेगा,
क्रिमिनल लितिगेसन कम हो सकेगा .
सिविल उपचार सुलभ किया जाना चाहिए . सिविल अधिकारों की रक्षा ,,लेन -देन ,व्यव्सायिक अधिकारों ,व्यावसायिक स्थिति की व्याख्या तत्परता से तथा अन्तिमता से सीधे निचले स्तर पर ही जिम्मेवारी के साथ किया जाना चाहिये .

Tuesday, 13 May 2014

सभ्यता , विकास ,ज्ञान ,विज्ञानं जो कुछ भी है वह पहले की पिढ़ी के द्वारा चली गई दूरियाँ ही तो है , उनका यश -अपयश , हानि -लाभ , जीवन -मरण , खोया-पाया , संभाला -रखा , खाया-उड़ाया , समझा -समझाया , बूझा -बुझाया , देखा -दिखाया ,बनाया -बनवाया  , लिखा -लिखवाया ; यही सब तो है हमारी सभ्यता, संस्कृति और संस्कार।
इसका भला बुरा तो हमें ही भोगना पड़ेगा।
इसका आनन्द भी है ही और  कष्ट , भोग भी।
इसमें एक नया अध्याय यों तो स्वतः जुड़ता ही रह्ता है , पर यत्न पूर्वक नया अध्याय जोड़ने का काम अत्यंत कठिन है , अतिरिक्त दायित्व है।
पहले की पीढ़ी का चला ,गला  या गलाया आगे के अनुभवों क मार्ग तो प्रसस्त कर्त्ता ही है।  सावधान होकर आगे चलना आपका काम है।
हाँ , कभी कभी इतिहास दर्द दिये जाता है और यह दर्द नई यात्रा के दौरान नहीं चाहते हुए भी सार्वजनिक हो ही जाता है , सहानुभूति बटोरने के लिये नहीं पर स्वयं को अतिरिक्त आत्मविश्वास देने के लिये।  
Judges must not form and express opinions over political controversial issues nor on individual crime scenes until and unless it is really personal or it is a part of their jurisdiction and official duty.  Not even by implication.
Judges should be public only on academic issues, personality development issues, legal thought and philosophy issues, pure literature, spirituality and never on any individual fact based issue.
Judges speak on facts only when it is a part of their jurisdictional duty.
Judges learn to cap themselves.Judges never burst , never in public or in air. Judges feel and analyse but retain that, save that in a separate coded file access to which is denied to public and press until and unless  the same has the sanction of their jurisdictional duty.
एक देश आपरेशन थिएटर में आपरेशन टेबल पर कितने दशकों से पड़ा है , मैं नहीं जानता उसका आपरेशन हुआ भी की नहीं , उसे बेहोश भी किया गया था या नहीं ,कभी कभी तो लगता है की बीमारी का पता भी लगाया गया है या नहीं ,बिना बीमारी का पता  लगाये और बिना डाक्टर ,अनेस्थेसिस्ट ,ओ टी पारा मेडिकल स्टाफ के ही लोग देश को जबरदर्स्ती ओ टी में खींच कर ले गये हैं क्या. मेरी समझ में साठ -सत्तर सालों का समय पीढ़ियों का इम्तिहान लेने के लिये काफी है .

Monday, 12 May 2014

Judiciary failing to judge fairly and in a standard transparent way is bound to shed much of its judicial freedom to legislature and executive.
A fair transparent standard judiciary is respected more than a doctor, police, business  house.leader,administrator, executive,academician, politician and all.
Judges and their family members at all level are under tremendous pressure- at lower level it is in-house as well out-house pressure that plays havoc- but then the other level judges in-spite of their best intentions, integrity and wisdom suffer the worst and that too alone- none to stand with you or the judge. Judges at lower level care more , suffer more for the over-all reputation of the system but the biggies never take note of that. Even some high-spirited lawyers also suffer for being fair and for the system and face same pressure but they also go unsung, unlamented.

Then why this headline-

'Pressure' on judges in Sahara case jolts legal eagles

Mail Today Bureau    New Delhi   Last Updated: May 12, 2014  | 18:36 IST

This only confirms my above statement that LAW BIGGIES never care for JUSTICE PIGGIES.
बल ,बुद्धि ,शौर्य  एक तरफ , प्लानिंग , मैनेजमेंट ,वारफेयर  तथा एन  मौके पर चतुराई , खुशामद तथा अंततः निर्णय के दिन की स्थितियों का पूर्वाकलन  अन्तिम फल  का स्वरुप निर्धारित करते हैं। 
And critics do not decide my fate. I must continue till all my critics are spent away.
I govern myself. Enemies do not set rules for me .I must decide my route and find it out, secure it and walk my route in my way.

Sunday, 11 May 2014

  IP Concept- a Journey and pause, Jerk, Jolt
The state and world community has a duty to recognise IP right of every  human  as basic feature of human independence, human right and human property.


A few decades ago we as a society resisted Trade marks and copy-rights, still to-day we do not think high of those who assert their Trade-Mark -Rights or Copy -Rights and courts or police in India do not come promptly to control the infringements of these rights- even to-day those who assert their rights as a writer, composer, singer etc. are not taken in healthy esteem- We have never encouraged IP... creators nor do we provide stimulant for IP entrepreneur- to know IP law is one thing, to fight tooth and nail for IP awareness is different. We do not have Indian IP Vision For next 50 years. We fail to understand that IP law is not mere law but IP declaring factory, recognising mechanism and an independent production process that can independently contribute to GDP of the nation
Only IP entrepreneur knows the entire teething pain, the other odds and lastly how SC is going to decide. Of course investment, confidentiality and ultimate risk factors are always there. We have in India few IP savvy brains, fewer technocrats, still fewer professionals and hardly any one in legal field , none in judiciary. But the new generation will fight against status quoist mind set. No more only defensive attitude, no more protectionist mind-set, let there be a healthy competition- in the long run India will gain provided we encourage our young imaginative minds.
We proved that we are basically IP market or IP consumer and not at all interested in IP creation, production or improvement.
If one (1) and Two (2) are distinguishable and are definitely different numbers , how you are confused in between 100000( one lakh) and 100001 (one lakh and one) , only proportion confused you all.
It takes a larger investment of time ,mind, resources, intuition to make even the slightest improvements after a certain degree of development and only these last cutting edge improvements create the winning IPs but then only learned specialists can differentiate between the two, not everybody and never ordinary minds.
Let us hope better conducive climates for IP entrepreneurs - not for now at least.





If we take and we have taken and succeeded in getting the concept of Intellectual property formalised to a great extent. Then we will have to concede that every property has to pass through a production process- utility creation process, securing it process, processing it process. Like all the manufacturing processes IP Production creation must have more or less same or similar entrepreneurial hazards.
Similarly the process may have to be abandoned mid-way. The entrepreneurial activity carries other commercial, moral, sharing, apportionment, quantifying, inter-se interest-conflict,  entry of new entrepreneurs, exit of entrepreneur for various reasons. Successful IP activity is always welcome but as an society we must be ready for unsuccessful IP adventure. Now the once unsuccessful IP adventure may further be continued either this way or that way. Some time a very rewarding IP adventure may has to be stooped for some time for want of financial resources, natural calamities, health risk of one or some components, for political reasons or some IP established may not be understandable to the contemporary society and may come to be  established at a late point of time



We must take into account all these dimensions of IP. IP is peoples worth, wealth and the state and world community has a duty to recognise IP right of every human basic feature of human independence,  human right and human property.
यदि तुम बीज हो ,या  बीज़ बननें को हो तैयार
तो उग तो तुम जाओगे ही , उगा तुम्हे मैँ ढुंगा।

उगना उतना मुश्किल नहीं  जितना उगते रह्ना
अट्ठासी इंच का घेरा केवल उगने से नहीं बनता

लगातार उगते ही  रहना पड़ता है, इसके लिये
लगातार चीर देने वाली धुप में जलना पड्ता है।

बगीचे में नहीं ,जंगल मेँ लगातार रह्ना होत है
काटता अँधेरा ,काटती ठण्ड सभी सहना होता है।

इन सबके बाद धरती का सीना चीर, या हवा से
लगातार अपनी प्यास  ही बुझाते रहना होता  है


I explain and narrate myself again and again only for myself and never for you all . I have only one duty , to make myself truly useful for the society and the generations that are coming or have to come up, and for that I confine myself to my own self examiningly. exactingly .I brush myself. I audit myself.. I test myself. All my test reports are for me only. None for any of you.You all are free to block, unfriend me. Yes you all are free to skip and ignore me.

Saturday, 10 May 2014

कभी मैं तुम्हारे साथ , कभी तुम मेरे साथ ,
कभी मेरा हाथ तुम्हारे हाथ , कभी तुम्हारा ही मेरे हाथ
बस साथ साथ होने का सिलसिला यूँ ही चलता रहता है।
पकड़ा हाथ , न कुछ पूछा , बस उठें , साथ चल दिये
बस इसी के साथ , साथी और साथ बने. चले।   
There are several layers of truth and reality, all true and standing together at a time at a place, all the wonder! all standing supportingly, contributingly with eac other.
The more you see, the more you can see.
Walk closer, penetrate deeper, peruse and probe to see understandingly.
Understaning more is seeing more.
दीया हम देंगें
-चलो बन जायैगें, 
बाती देंगै
-चलो बँट भी हम देंगें
, सनेह भी हम देंगें
-चलो उर से टपकाते रहैंगें,
 फिर भी 
- अपने हिस्से का दीया तो खुद ही जलाना होगा
Please bear me and my impulsive instincts so long it does not tresspass the public-expectation domain.

Yes I am weak at places. I take some sweets at one point of time inspite of my being diabetic and against the doctors advice. I differ with my wife on the style of my bed-room or linen designs or curtain colours,and some time , of course temporarily; disproportionately. I shout aginst my son because he spent disproportionately.did not do reasoably well in exams,or did not rise reasonably on time on a family celebration day or was a bit late in reaching the airport to receive my sister because he stopped at his friends sop to watch a match a bit longer. I do that.I react if the dress selected by my wife or daughter , in my opinion is not proper, I sometimes react disproportionately.  I share jokes or light moments, private termininolgy with my inlaws. I share my body, emotions and instincts. Sometimes I may even touch the border lines.
 After all I am human.
 I get hurt emotionally at an abuse, accusation and react sometimes bodily.
 I am made up of blood and flesh.
I do freeze at times. I boil  when the heat is unbearable. I tend to break  when the pressure is unbearable.
 I cannot resist my favourite rasogollas . I get tempted.
 I love my wife, children , I miss my mother and want to see her. Yes, I am a normal human being.

Please bear me as a normal human being with all the weakness that does not relate to public domain.
I have a duty to trim myself according to social standards and expectations when ever I am concerned with my public profile.
I have the right to prepare my own final accounts , draw balance sheet periodically at irregular intervals , and once again audit it my-self, declare it prepared, drawn and verified by me and present it in public domain for public scrutiny.
Everyones life is public property and I respect the ownership rights of PUBLIC
हर बार खंजर सीने में उतरने के पहले कांपता है ,
जिस हाथ में होता है उसकी ओर देखता है
पूछता है चन्द सवाल बंद ज़ुबाँ से
क्या मेरे आका , मेरे लिये य्ही हुक्म है
और फिर उपर वाले पर  खुद को छोङ देत है
आँखें बंद कर , दाँत  पर दॉँत  चढ़ा लेता है
सामने किसी से माफ़ी मांगता है
जानता है कि यह काफी नहीं
पर मजबूरी के नाम कुर्बान हो जाता है
या कर देता है
हर खंजर यही भोगते आया है
आगे भी भोगेगा
नाचना खंजर के नसीब में नहीं
गाना भी तो उसके भाग में नहीं
खंजर तो खंजर होता  है
खंजर हो के देखो
यह मंजर कैसा लगता है। 
आज फिर वह दर्द याद आ रहा है
पलकों के पीछे छिपा , अब बहा जा रह है
दर्द का कर्ज , बहुत हुआ ,अब नहीं सहा जा रहा है
उस याद को फ़िर याद कर , अब नहीं रहा जा रहा है

Friday, 9 May 2014

The exemplary learning, hard-workmanship, the level of endurance and preservence , farsightedness, ability to analyse,categorize, marshal, prioritize,, to bear and to forebear the circumstances, the art of presentation and communication are a few of the lessons I am still practicing and trying to inculcate, imbibe and adopt.
I ave been drawing inspiration from various sources, persons , institutions, groups , places for the last forty two years and I am being confronted with a question to name those sources or write about those persons but I beg your pardon for the time being. I am not in a position to name them although I always acknowledge them, their contribution and their own energy level. I know and confess- it is really difficult to maintain that level of inspirational energy , that too sharingly, openly and generously. All of them deserve my _/\_. I pray for them . Let they be always with me in flesh and blood. Long live all my power houses._/\_
How to glorify a condemned death ? How to live with failures? How to wait for another round, another chance or a full-circle journey to get completed ?
Having perceived and pre-assessed the outcome, now they are trying to manage some sort of martyrdom tag to their failure . " Hum mare nahin, hum to shaheed hue hain " हम मरे नहीँ हैं , ह्म तो शाहीद हुए हैं "

Tuesday, 6 May 2014

मिटटी के सकोरे
बच्चे की मुट्ठी से भी छोटे ,
तिनके तिनके चुने गये
इक्टठा किये गए
सूखे पत्तों का
धूल गर्दा भरा अलाव
उसी में सेके गए
छोटे सकोरे
बड़े सपने
असलियत से हारते
अरमान
कौड़ी के भाव
बिकती मिहनत
टूटे सकोरे
बिना बिके जो रह गये
और जिसमे बह गये
मेरे सारे अपने
अपनों के सपने
प्लास्टिक दैत्य
बोरी में बंद कर ले गया
I do not make any political opinion or never attempt an assessment of any act heard or  seen until and unless making such an opinion or assessment is specifically thrust upon me either by circumstances or formally.
I keep myself free from any pre-occupied notion.
All those who are down, feel the same heat but cannot express. They seldom complain. 
Kings need not complain for they have the booty and sword.
Kings or queens need not worry because they breed only prince or princes. 
WE THE PEOPLE are born only to men on the street or in the field.
देह और स्व गिरा कर बस लगे रहना ,यह खुशामद करने की महती कला है ,सभी को न आती है , न सभी इसका अभ्यास कर सकते हैं . जिन्हें कभी इसी कला के माध्यम से कृपा पूर्वक कुछ प्रसाद में एक बार भी मिल गया , वे बस इस कला के भारी अभ्यासी हो जाते हैं .
स्व का समूल त्याग,अपने स्वार्थ के लिये बड़ी मोहक कला है .हर किसी के बस की बात नहीं .इस के लिये मोटी चमड़ी चाहिये .धूर्त बद्धि इस कला के अभ्यासी के लिये परमावश्यक है .चपल,वाक-प्रवीण चतुर भी होना चाहिये

Monday, 5 May 2014

राजमुकुट के लिये भी अपने आप से समझौता नहीं ,अपनी शांति से विनिमय नहीं , अपने मूल्यों का त्याग नहीं . राजमुकुट कभी स्थायी मान्यता नहीं दिला सकता .अपना विवेक,अपनी उपादेयता , उपयोगिता , जो समाज को समर्पित कर दी जाये वही समाज से स्वीकृति ,मान , सम्मान दिला सकती है -स्वार्थ और शक्ति नहीं 
Fair people like you can only be a bridge between the new and old generation sir.---Dhirendra Mishra
Whether winning elections is an alternative to judicial accountability.

If not ,what do these elections reflect?
I ask and keep on asking a question to myself-- “What is the system of pardoning people through apology?
The word that is curiously missing in all this present system is “justice”. When liberal commentators tell us that we need not fear for India’s democratic institutions , one wonders which institutions they are referring to. In truth, almost every major “pillar” of Indian democracy — political parties, the media, the judiciary, even the electoral system — has been rendered so fragile over the years that it will not need too drastic a push to render them impotent
Always claim what you think is yours. 
Do not hesitate in excluding even me if you have your own exclusive novelties.
I will resist you and your claim for exclusive rights. 
Do not get disheartened.
Meet me ,see me ,challenge me and win me.
Defeat me ,better me, get ahead of me .
I am not and never the last.
अपनी तारीफ सुनकर अजीब सा लगता है
et us tolerate and be together.
किसान को जमीन बेचते हुए देखने से बड़ा दुःख कुछ हो ही नहीं सकता .
नजदीक आ के देखो , अभी बहुत सारी आग बाकी है , 
अभी तो बहुत सारा सुलगना ही बाकी है ,
नजदीक आ के देखो , मैं धुँआ ही धुँआ दिख रहा हूँ क्यों की अभी बहुत सारी आग बाकी है , अभी तो बहुत सारा सुलगना ही बाकी है,और अभी तो जलवा बाकी है लहलहाते हुए जलने का - बहुत गर्मी बाकी है
अभी दुनियादारी को समझने का एक नया दौर बाकी है ,रेशियो और प्रोपोर्सन का और अधिक ज्ञान करना पड़ेगा . क्षमता ही नहीं रणनीति की भी जरूरत पड़ती है .
Why we are not even ashamed of a convict or a conviction? Why we allow them to be discussed as hero or heroic deed ? Why we bestow so much glory upon them in even our public discussions and esteem?Why we do not project them as law breaker nor as guilty of moral turpitude ? Are we ourselves basically
law- breaker-worshipper?

Saturday, 3 May 2014

गीदड़ ,लोमड़ी ,भेड़िये ,सियार ,बगुले के जीन  तथा उनकी प्रचलित चारित्रिक विशेषता अब तो क्वालिटी के आवश्यक इन्ग्रेदियेंट के रूप में लगभग स्वीकार कर ही ली गई है .पगुराने वाले भारवाही जीव, दुधारू जानवर , भोजन के हिस्से बनने वाले जानवर-जीव के जीन तथा उनके प्रचलित गुण अब स्वीकृत अवगुण ,अयोग्यता के पारामीटर बन चुके हैं. मूल्यों की परिभाषा तेजी से बदल रही है ,अब भेड़िये द्वारा बकरे की खाल ओढ़ना धोखा देने का प्रयास नहीं ,स्ट्रेटेजी तथा रणनीति कहलाती है ,सीखी और सिखाई जाती है .

Friday, 2 May 2014

http://www.tms.org/pubs/journals/JOM/matters/matters-9404.html

Writing an Effective Invention Disclosure

Arnold B. Silverman
चलना तो भला ,पर चला किसी को नहीं बताना सामाजिक अपराध . चलिये ,बेशक चलिये ,चलना आपका अधिकार भी है और दायित्व भी .पर आपके चले पर ,चलने पर समाज का भी अधिकार है .
कभी ह्वेंसांग ,फाहियान ,इब्नबतूता ,अल-बरुनी ,कोलम्बस,मैगलेन ,शंकराचार्य ,सांकृत्यायन  ,गाँधी चले थे .उन्होंने चला सबको दिखाया ,बताया.बुद्ध चले थे .
दिखाते चले ,सिखाते चले .चलनेका यही सामाजिक धर्म है .
बताते -बतियाते चलो ,सीखते सिखाते चलो, दिखा कर चलो ,समझते समझाते चलो .
चला बताओ , कैसे कैसे चले हो , बताओ ,कहाँ रुके , कहाँ झिझके ,कहाँ ठिठके ,कब कहाँ और क्यों डरे ,कब क्यों और कहाँ ठोकर लगी ,कैसे गिरे ,फिर कैसे उठे ,आगे कैसे बढ़े - यह सब बताना ही चलने को सार्थक बनाता है .
चलने के क्रम के ये अनुभव तुम्हें बाँटना ही चाहिये . तभी तुम्हारा ,मेरा या किसी का भी चलना सही होता है .
असफल यात्रा का भी वृतांत सार्वजानिक किया जाना चाहिए .वह भी सिखा हुआ है, सिखा सकता है उससे भीकुछ जाना जा सकता है .
Invention Disclosure  की तरह अपनी यात्रा बताते चलो .अब यह समाज का दायित्व है तुम्हारे प्रति confidentiality maintain करे ,तुम्हारे चले में से Prior Art खोजे ,मिलाये और उसी चले में से Novelty खोज कर तुम्हें मान्यता दे.कम से कम तुम खुद से तो बेईमान नहीं ही रहोगे .
मैं विरुद के लोभ में न कुछ करता हूँ ,न करना चाहता हूँ - न लिखता हूँ न लिखना चाहता हूँ !
हाँ खुद को पूरी तरह खोल कर देखना चाहता हूँ - अपनी आँखों से और दूसरों की आँखों से . सार्वजनिक पद पर रहकर सार्वजानिक जीवन ही मेरी पूंजी है ,उसे ही सार्वजनिक करते रहता हूँ .
Whether winning elections is an alternative to judicial accountability.

If not ,what do these elections reflect?
I ask and keep on asking a question to myself-- “What is the system of pardoning people through apology?”
The word that is curiously missing in all this present system is “justice”. When liberal commentators tell us that we need not fear for India’s democratic institutions , one wonders which institutions they are referring to. In truth, almost every major “pillar” of Indian democracy — political parties, the media, the judiciary, even the electoral system — has been rendered so fragile over the years that it will not need too drastic a push to render them impotent.
क्या कविता काव्य-शास्त्रियों के लिये लिखी जाती है ,काव्य क्या भाषा-विज्ञानी के अनुसन्धान प्रयोजन से सिरजा जाना चाहिए , क्या कविता की कसौटी युनिवेर्सिती के सेमिनार हाल में होने वाले सेमिनार, तर्क वितर्क ही होने चाहिए .
जब जब वो सितम जिन्होंने मुझे तपाया , गढ़ा , गुंथा ,गलाया ,मांजा याद आते हैं तो आखे भर आती है - ठीक है कि वह सब कुछ बहुत ही कडुआ था ,शायद अप्रिय ,अरुचिकर भी था- शायद रुलाया भी हो - पर उसी सब ने तो इतना कुछ सिखा डाला - धन्यवाद उन तमाम पीड़ा के श्रोतों -आप सभी का समवेत आभार -आप सब उस रूप में नहीं आये होते तो शायद मैं नहीं हुआ होता , इस रूप में तो कत्तई नहीं .
मुझे आप सभी बार बार याद आते रहोगे ,मैं आप सभी का चिर काल तक ऋणी रहूँगा -आप ही तो हो अक्षय उर्जा भंडार .
अपमान ने बार बार मान की भूख बढाई .अपनी भूख से मैंने भूख के ताप को समझा . दरिद्रता ने क्या नहीं सिखाया .परिश्रम की मजबूरी तो इन्हीं सब की पैदा की हुई थी , तभी तो मैं उस देह्तोड़ परिश्रम तक को झेल सका .तभी तो मैं अंकुर सका . न वह सीलन भरी गुन्साईन दमघोंटू जमीन के अन्दर दबाया गया होता ,उपर से धुप बरसात - पर अंततः सभी के कारण ही जीवन अस्तित्व में आया .
थैंक यु -जब जब बहार आई , और कोई कली खिल आई ,या कोपल फुट आई, मुझे मट्टी में दबे केंचुए की याद आई कि उसी ने धरती जगाई 
 खुशवंत सिंह सर शोभन सिंह के पुत्र थे जिन्होंने भगत सिंह के खिलाफ गवाही दी थी ,जो अंग्रेज बहादुर के प्रिय ठेकेदार थे और एक समय था जब कहा जाता था आधी नई दिल्ली सर शोभन की -सारे दुनिया के नामी लोग जब भारत आते थे तो कुछ आनंद के लिये ,सत्संग के लिये खुशवंत जी के यहाँ जरुर हो लेते  थे 
मैं नई पीढ़ी का तो नहीं पर आपके जस्ट बाद की पीढ़ी का हुँ. मैने आपका संघर्ष और कामयाबी देखी। ये सब प्रेरणादायक है. आपके जो आत्मीय रिश्ते इस शहर से ( खास कर मेरे पापा और कुछ अन्य सीनियर्स ) से रहे वो याद आते हैं। हो सकता है मेरे बाद कि पीढ़ी आपकी यात्रा के बारे मे इतना नहीं जानती हो। लेकिन कम से कम इतनी उम्मीद है कि वो आपकी यात्रा के शीर्ष से राह कि दुर्गमता का अंदाजा लगा लेगी। नई पीढ़ी को आपसे उम्मीद होगी संवाद की, प्रोत्साहन और मार्गदर्शन की, उस अधिकार भाव कि जो मेरे जैसे लोग आप पर रखते आए हैँ। जहाँ तक याद रखने का सवाल है , मुझे नहीं लगता कि जो कोइ आपके करीब आया वो आपको भूल सकता है। आप विशिष्ट है , अपनी ऊर्जा से भरे, चिन्तन मे डूबे पर जीवन कि सहज़ता को बचाए हुए , रिश्ते बनाते , बिन अहंकार उन्हे निभाते , परंपरा का सम्मान करते पर नयेपन के लिये स्वागत का भाव लिये। हम उस पल का इंतज़ार कर रहे है जब आप अपने पदीय दायित्वों से मुक्त नई भूमिका लिये समाज के साथ खड़े दिखेंगे - उसे गति देते हुए। .... आपकी अभी बहुत जरुरत है , पहले से ज्यादा . अभी बैलेंस शीट बनाने का वक़्त नहीं आया , अभी तो कई पन्ने जुडने बाकी हैँ , अभी आपके लिये बहुत काम बाकी है। अभी हमें आपसे बहुत से गिफ़्ट लेने हैँ ,

प्रेमेन्द्र मिश्र जी के पोस्ट से 

Thursday, 1 May 2014

रास्ते चलने ही पड़ते हैं -चला हुआ ही रास्ता .
रास्ते वे ही जो चले जाएँ ,
चले रास्ते ही याद किये जाते है -
चले रास्तों की सफर ही याद आती  है ,चलने वाले को भी ,और बाद वालों को भी .
कुछ याद रखना हो तो ,कुछ याद करना हो तो , कुछ यादें छोड़ जानी हो तो -नये रास्ते नये तरीकों से नई सफर तय करते चलो .
मैनें नई पीढ़ी को अधिक योग्य , भरोशे लायक ,एनालिटिकल ,धैर्यवान ,साहसी  तथा पुरुषार्थी पाया है .
New generation has received more acceptingly and delivered more intelligently.
They worked harder at all levels and has shown readiness to own their deeds and all around responsibilities
जाना तो है ही न .
तब जाने की तयारी अभी से क्यों नहीं .
बिना तयारी कहीं भी कभी भी नहीं जाना चाहिए .
मैं बार बार यह समझने में लगा हूँ कि नई पीढ़ी को मुझसे और क्या तथा कितनी उम्मीदें हैं ,
वे मुझसे क्या और कैसे , कितना करने की उम्मीद रखते हैं.
मैं यह भी जानने और पहचानने का प्रयास कर रहा हूँ कि आ रही पीढ़ी कहाँ कहा ,क्या क्या और कैसे कैसे , मुझसे कुछ नहीं करने की अपेक्षा रखती हैं .
वे मुझसे कितना बदलने की उम्मीद रखती है .आखिर काफी कुछ बदल तो गया ही है न .
मैं बैलेंस सीट बनाने में जूटा हूँ ताकि मेरे आडिटर ,मेरी नई पीढ़ी ,मुझे जांच सके 
मैं आपको क्या गिफ्ट दे कर जाऊँगा , आप सब मुझे कैसे याद करोगे , 
आप क्या उम्मीद रखते हैं . 
मेरा और आपका जैसा भी जितना भी साथ रहा उसमे याद रखने लायक कुछ तो होगा 
मैं बार बार यह समझने में लगा हूँ कि नई पीढ़ी को मुझसे और क्या तथा कितनी उम्मीदें हैं ,
वे मुझसे क्या और कैसे , कितना करने की उम्मीद रखते हैं.
मैं यह भी जानने और पहचानने का प्रयास कर रहा हूँ कि आ रही पीढ़ी कहाँ कहा ,क्या क्या और कैसे कैसे , मुझसे कुछ नहीं करने की अपेक्षा रखती हैं .
वे मुझसे कितना बदलने की उम्मीद रखती है .आखिर काफी कुछ बदल तो गया ही है न .
मैं बैलेंस सीट बनाने में जूटा हूँ ताकि मेरे आडिटर ,मेरी नई पीढ़ी ,मुझे जांच सके 
मैं आपको क्या गिफ्ट दे कर जाऊँगा , आप सब मुझे कैसे याद करोगे , 
आप क्या उम्मीद रखते हैं . 
मेरा और आपका जैसा भी जितना भी साथ रहा उसमे याद रखने लायक कुछ तो होगा !