Saturday, 1 March 2014

स्कूलों में बचपन संवरता जा रहा है
बचपना धीरे से सरकता जा रहा  है।
अंजाना सा कुछ चमकते जा रहा है
हर घूंट में कुछ अटकते जा रहा है।

स्कूल से निकला बचपन अब कहाँ।

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