विधि ,विधायिका ,संविधान ,ये सब शुरू से ही मेरे प्रिय विषय रहे हैं। सन १९६७-६८ के आस-पास कलकत्ता के श्री दिगंबर जैन विद्यालय जो कलकत्ता के विख्यात व्यवसायिक हृदयस्थली सत्यनारायण पार्क के लगभग सामने एक सात मजिला ईमारत में अवस्थित था और जिसके चरों और केवल बाजार ही बाजार था , में हायर सैकेंडरी की पढाई के दौरान नागरिकशास्त्र मेरा प्रिय विषय था।
नागरिकशास्त्र पढ़ाने वाले शिक्षक , जहाँ तक मुझे याद पड़ता है का नाम श्री ह्रदय नाथ दुबे ( एच एन दुबे ) था। वे नागरिकशास्त्र विषय को अत्यंत रुचिकर बनाकर पढ़ाते थे. उनका अधिकांश समय भारतीय संविधान के स्वरुप की व्याख्या में ही व्यतीत हो जाता था। सम्भवतः वह भारतीय संविधान का संक्रमण काल थाऔर उसी दौरान प्रिवी-पर्स ,कोयला खदान राष्ट्रीयकरण ,बैंक राष्ट्रीयकरण आदि विशिष्ट निर्णय लिए गए थे।
नागरिकशास्त्र पढ़ाने वाले शिक्षक , जहाँ तक मुझे याद पड़ता है का नाम श्री ह्रदय नाथ दुबे ( एच एन दुबे ) था। वे नागरिकशास्त्र विषय को अत्यंत रुचिकर बनाकर पढ़ाते थे. उनका अधिकांश समय भारतीय संविधान के स्वरुप की व्याख्या में ही व्यतीत हो जाता था। सम्भवतः वह भारतीय संविधान का संक्रमण काल थाऔर उसी दौरान प्रिवी-पर्स ,कोयला खदान राष्ट्रीयकरण ,बैंक राष्ट्रीयकरण आदि विशिष्ट निर्णय लिए गए थे।
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