वाह रे तूं
कतरा कतरा ढालता रहा
मेरा प्याला यूँ भरता रहा
मेरी निगाहें थी समंदर पर
तूं आबे जमजम पिलाता रहा
दिये भर रौशनी भी मयस्सर न थी
तूं नूर ए आफ़ताब बख्शता रहा .
तरसता था एक बूंद को ,एक शक्ल को
तूने तो एक दरिया ,एक काफिला बना डाला .
कतरा कतरा ढालता रहा
मेरा प्याला यूँ भरता रहा
मेरी निगाहें थी समंदर पर
तूं आबे जमजम पिलाता रहा
दिये भर रौशनी भी मयस्सर न थी
तूं नूर ए आफ़ताब बख्शता रहा .
तरसता था एक बूंद को ,एक शक्ल को
तूने तो एक दरिया ,एक काफिला बना डाला .
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