Saturday, 22 March 2014

तुम कौन हो भाई!
अनजान हो पर हो जानदार

परत दर परत मुझे खोलते
तुम कौन हो भाई!
अनजान हो पर हो जानदार!

सिहर जाता है मन ,पर अच्छा लगता है
तुम्हारा यूँ परत दर परत खोलना
तुम कौन हो भाई!
अनजान हो पर हो जानदार!

परत दर परत मुझे खोल कर पढ़ते हो
पोस्ट दर पोस्ट स्क्रोल कर मुझे टटोलते हो
अच्छा तो लगता है भाई ,पर डर भी तो है
आखिर तुम क्या कहोगे भाई
तुम कौन हो भाई!
अनजान हो पर हो जानदार!

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