Sunday, 23 March 2014

कमतर मेरे जैसों को कमबख्त इस कलम ने गहरे जख्म दिए , और कलम के सूरमाओं ने बुरी तरह से मुझे घेर ही डाला,, इनमे भीष्म Prem Mohan Lakhotia,अभिमन्यु -अनुज अग्रवाल ,शल्य  सारथी - Dhruv Gupt,Prem Chand Gandhi , Mohan Shotiya Anirudh Sinha आदि  अनेक, कुछ रंगीन स्याही से लिखते हैं - मेरी तो सीधी सादी काली स्याही ही भली ,---ज्यों ज्यों बुडे स्याह रंग त्यों त्यों उज्जलु होय ,लाल पसंद नहीं ,तिरंगी लिखना नहीं है , केसरिया स्याही का प्रश्न ही नहीं  , बेहतर कलम वालों का मल्लयुद्ध साक्षी भाव से देखता हूँ, जाने कब गवाही देनी पड़ ही जाये , या जाँच के लिये आंच लगने लगे या कभी मेरी प्रोफाइल का काम - कोई निर्णय ही देना पड़ ही जाये ----- सचमुच मुलाकात सरे आम न हुई होती ,सरे -राह न हुई होती , थोड़ी इतमिनान से हुई होती तो और डूब कर मजा लेता , और तब आपको तबियत से बताता हाल -ए-मुलाकात -Prem Mohan Lakhotia Sir _/\_

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