Thursday, 20 March 2014

मिटटी के सकोरे
बच्चे की मुट्ठी से भी छोटे ,
तिनके तिनके चुने गये
इक्टठा किये गए
सूखे पत्तों का
धूल गर्दा भरा अलाव
उसी में सेके गए
छोटे सकोरे
बड़े सपने
असलियत से हारते
अरमान
कौड़ी के भाव
बिकती मिहनत
टूटे सकोरे
बिना बिके जो रह गये
और जिसमे बह गये
मेरे सारे अपने
अपनों के सपने
प्लास्टिक दैत्य
बोरी में बंद कर ले गया 

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