Saturday, 22 March 2014

लंगोटी पहने सुबह का किसलय सूरज
और झुर्रीदार रात के अभिसार के बाद थका चंदा मामा
अहले सुबह दोनों की कबड्डी , कित -कित देखते ही बनती है
अपनी गर्दन नचा नचा गौरैया दोनों का मजा ले रही है

शाख -शिखर पर निकल रहा नया लाल लाल पत्ता
वहाँ बैठी कलंगी वाली बुलबुल ,गाने गा-गा कर
नाचती छींटदार तितली ,अपनी चटक फ्राक लहराकर
फुदकती गिलहरी अपनी झब्बेदार पोंछ नाटक मटका कर
चाँद को रात वाली चांदनी की बात याद दिला रही है

चाँद आखिर शर्माते हुए जाना ही चाहता है
कि तभी तेज रौशनी सूरज के साथ खेलने चली आती है
देख शर्माए स्खलित चन्द्र को , अभिसार का  सार जान
सूरज और रौशनी ने एक बार चाँद को अपने घर में छिपा लिया है .


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