Saturday, 21 September 2013

लक्ष्य तक की यात्रा के लिये न तो कोई सहयात्री मिलतें हैं, न कोई वाहन,कोई शिड्यूल भी बनी बनाई नहीं मिलती- एडवांस बुकिंग का तो प्रशन ही नहीं---- सच -दिशा भ्रम न हो इस ख्याल के साथ ऐकला चलो रे और हाँ, रूकना मत, मैं भी कहूँ तो भी नहीं, जब विश्वास हो जाये कि अब चल पड़ना है तब बिना साइत संजोग देखे मूट्ठी बधी, भृकुटी तनी, दाँत पर दाँत चढ़ाया, सजग, सावधान,सरल चल दिया---- लक्ष्य खुद रू-बरू हो ते जायेंगें, पर तब भी रूकना मना है-, अभी और चलते जाना है----

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