Saturday, 21 September 2013

भ्रमित तो मैं हो सकता हूँ जो साठ साल चला,चलता रहा, पर वहीं का वहीं।
युवा के भ्रमित होने का प्रश्न कैसा, वह तो अभी चला ही नहीं।
आप और हम साठ, सत्तर, अस्सी साल के हो सकते हैं, हो सकता है हम अपने मायने में सफल भी हों, हम पाँच सात यशस्वी संतानों के माता पिता भी हो सकते हैं, सौ- दो सौ यशधारी के गुरू भी हो सकते हैं- पर हम न तो सर्वकालिक हैं, न हीं सर्वश्रेष्ठ।
हम क्यों नई पीढ़ी के प्रति अविश्वास का भाव रखते हैं।
आज तक हर नया कदम नई पीढ़ी ही लेती आई है।क्यों हम अपने बासी अनुभवों के आधार पर उन्हें चलने को विवश करने पर तुले हैं।
परिवर्तन से इतना डर क्यों।
क्रान्तियाँ पहले की नई पीढ़ियों ने नहीं की थी क्या।
भावान्तर, विचार-विरोधों के प्रति इतनी आसहिष्णुता लगभग जा चुकि मेरी जैसी पीढ़ी को शौभा नहीं देती।

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