वस्तुतः हिन्दुस्तान में एक पूरी की पूरी पीढ़ी बिना जिम्मेवारी के जीने
की अभ्यस्त हो चुकी है । उनका बस चले तो वे साँस भी दूसरे के भरोसे लें ।
हिन्दुस्तान ही क्यों, पूरे विश्व में काम करने वालों के नाम पर काफी हल्ला गुल्ला होता है।श्रमिकों के नाम पर पूरा का पूरा वर्ष मनाया जाता है । पूरी की पूरी एक विचार- धारा है,पर किसी को किये के फल, सुफल या कुफल या असफल की चिन्ता नहीं। ऐसी पूरी पीढ़ी समाज के लिये खतरा बन जाती है।
आप धनी लोगों से घृणा करते हैं, पर स्वयं धनी बना चाहते हैं।आप धन से घृणा नहीं करते। आप संपत्ति में बँटवारा चाहते हैं,आप लाभमें हिस्सा चाहते हैं, सनृद्धि में हक जताते हैं।
कभी सोचा, लाभ आया कैसे,धन बना कैसे,सनृद्धि आयेगी कैसे। धन रहेगा तब ना बँटवारे की बात उठेगी। धन या धनी रहेगा ही नहीं तो--------।
आपने शहद देखा है। मधुमक्खियों के छत्ते भी देखे ही होंगें।
कैसे लगेगा जब दिन रात मिहनत कर रही इन असंख्य मधुमक्खियों को कहा जाये कि इन्होंने बगीचे के फूलों का शोषण किया है। फूलों से पूछिये तो सही इन मधुमक्खियों, तितलियों, भौंरौं ने इन्हें क्या दिया है। इन्हीं मधुमक्खियों, तितलियों, भौंरौं ने फूलों में बीज पैदा होने की प्रक्रिया में अपना योगदान दिया है। फूलों को मुस्कुरना सिखया है। किसी वनस्पतिशास्त्री से पूछिये,ये शहद की रचना करने वाली मधुमक्खियों का इन फूलों के जीवन में कितना योगदान है।
फिर एक बार सावधान होकर सोचिये।आपने शहद देखा है। मधुमक्खियों के छत्ते भी देखे हैं। मधुमक्खियों का आते जाते भी देखा है। पर शहद लेकर आते जाते उड़ते कभी किसी मधुमक्खी को देखा है। मधुमक्खियाँ फलों के जीवन का अभिन्न अंग है।
प्रकृति में सभी कुछ परस्पर जुड़ा, संबंधित , आश्रित होता है।
मधुमक्खियाँ की सतत मिहनत तथा फलों का सतत जीवन क्रम ही शहद की पूर्व शर्त है, परस्पर सहज स्वरूप है। शहद के निर्माण का यहि प्राकृतिक नियम है- परस्पर आश्रय।
शोषण के लिये कोइ स्थान नहीं।
कभी सोचा है बिना मधुमक्खियों के जीवन कैसा.
हिन्दुस्तान ही क्यों, पूरे विश्व में काम करने वालों के नाम पर काफी हल्ला गुल्ला होता है।श्रमिकों के नाम पर पूरा का पूरा वर्ष मनाया जाता है । पूरी की पूरी एक विचार- धारा है,पर किसी को किये के फल, सुफल या कुफल या असफल की चिन्ता नहीं। ऐसी पूरी पीढ़ी समाज के लिये खतरा बन जाती है।
आप धनी लोगों से घृणा करते हैं, पर स्वयं धनी बना चाहते हैं।आप धन से घृणा नहीं करते। आप संपत्ति में बँटवारा चाहते हैं,आप लाभमें हिस्सा चाहते हैं, सनृद्धि में हक जताते हैं।
कभी सोचा, लाभ आया कैसे,धन बना कैसे,सनृद्धि आयेगी कैसे। धन रहेगा तब ना बँटवारे की बात उठेगी। धन या धनी रहेगा ही नहीं तो--------।
आपने शहद देखा है। मधुमक्खियों के छत्ते भी देखे ही होंगें।
कैसे लगेगा जब दिन रात मिहनत कर रही इन असंख्य मधुमक्खियों को कहा जाये कि इन्होंने बगीचे के फूलों का शोषण किया है। फूलों से पूछिये तो सही इन मधुमक्खियों, तितलियों, भौंरौं ने इन्हें क्या दिया है। इन्हीं मधुमक्खियों, तितलियों, भौंरौं ने फूलों में बीज पैदा होने की प्रक्रिया में अपना योगदान दिया है। फूलों को मुस्कुरना सिखया है। किसी वनस्पतिशास्त्री से पूछिये,ये शहद की रचना करने वाली मधुमक्खियों का इन फूलों के जीवन में कितना योगदान है।
फिर एक बार सावधान होकर सोचिये।आपने शहद देखा है। मधुमक्खियों के छत्ते भी देखे हैं। मधुमक्खियों का आते जाते भी देखा है। पर शहद लेकर आते जाते उड़ते कभी किसी मधुमक्खी को देखा है। मधुमक्खियाँ फलों के जीवन का अभिन्न अंग है।
प्रकृति में सभी कुछ परस्पर जुड़ा, संबंधित , आश्रित होता है।
मधुमक्खियाँ की सतत मिहनत तथा फलों का सतत जीवन क्रम ही शहद की पूर्व शर्त है, परस्पर सहज स्वरूप है। शहद के निर्माण का यहि प्राकृतिक नियम है- परस्पर आश्रय।
शोषण के लिये कोइ स्थान नहीं।
कभी सोचा है बिना मधुमक्खियों के जीवन कैसा.
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