Thursday, 19 September 2013

विचार कर कर देखिये- पुराने राजघरानों का भारतीय विदेश सेवा, प्रशासनिक सेवा, सेना के उच्च अधिकारी पद, विशिष्ट राजनैतिक पद आदि पर बाहुल्य है।
आज भी प्रकारान्तर से भारत में आम आदमी आम ही है ।
 जो खास थे वे खासम-खास, गुलाब खास और सुगंधित खस-खस हो गये, खास लोगों के बीच खास जगहों पर सजे हैं या खास सुगन्ध से खासों के यहाँ लटके है- खास थे , खास हैं , शायद आगे भी रहेंगें ही ।
आम तो आम आम है, कोई गुलाब खास थोड़े ही है।
आम आम को खा दिया गया, यही बहुत है। आम आदमी चूसा हुआ आम है।आम की नीरी गुठली है।
आम आदमी को और क्या चाहिये। पूजा में आम का पत्ता लगता ही है। आम आदमी को संतोष ही नहीं है ।
 वी द पिपुल आफ इन्डिया लिख देने से क्या कुल वंश खानदान बदल जायेगा।
और यदि बदल ही जायेगा तो भी दो तीन सौ साल लगा दिये जायंगें ।
वी द पिपुल आफ इन्डिया की व्याख्या में भी तो खास लोग ही बैठे हैं- राजघरानों में ,औद्यौगिक घरानों मे तथा और खासों में दोस्ती इतनी कमजोर नहीं पड़ गई है  कि आम आदमी शिखर तक खाम खाह बात करने लगे।
हाँ, कभी काल ऐसा होने लगा है- पर बहुत रेयर ही है

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