Monday, 16 September 2013

मन लगा कर अबकी जल जाना है ऐ मेरे दीप
दीया मैं बन दूँगा, बाती में कस के बँट दूँगा
ऐ मेरे जिगर के टूकडे, तेल बहुत भरा है
बस तुम्हें आग जगानी है, धधका  मैं दूँगा।

इस बार तो बिना बसन्त के बहार लानी होगी
अब तो पतझड़ नहीं, यह बसन्ती रानी होगी
एक बार तो रात में ही सूरज को आना  होगा
अमावस की रात होगी और चाँदनी भी होगी

सूरज ऐसे दिया लेकर क्या ढ़ँढ़ रहा है, देखो,
मेरे गम  यूँ बाजा बजाते कैसे नाच रहे हैं, देखो
पानी आग की डोली चढ़ कैसे आया है, देखो
आसमान धरती तक कैसे चला आया है, देखो।

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