सुरक्षा नहीं, स्वरक्षा ही हमारा धर्म होना चाहिये।
जीव मात्र के इस स्वरक्षा के अधिकार को सम्मान देने के लिये ही कानून बनाये जाते हैं।
मेरे शील, वैभव,यश, श्रेय यहाँ तक की मेरी प्रेरणा तक की रक्षा करना ही मेरा धर्म है और सामन्य कानून।
जो विधि मेरे शील, वैभव,यश, श्रेय,मेरी प्रेरणा की रक्षा का अधिकार मुझे समुचित रूप से नहीं देती वह विधि कुछ काल के लिये मुझ पर थोपी तो जा सकती है, मेरी स्वाभाविक श्रद्धा प्राप्त नहीं कर सकती।
मेरी स्वरक्षा का अधिकार सर्वोपरी है।
आप मेरे इस अधिकार का सम्मान करें, मैं आपके उसी अधिकार की रक्षा करूँगा।
जीव मात्र के इस स्वरक्षा के अधिकार को सम्मान देने के लिये ही कानून बनाये जाते हैं।
मेरे शील, वैभव,यश, श्रेय यहाँ तक की मेरी प्रेरणा तक की रक्षा करना ही मेरा धर्म है और सामन्य कानून।
जो विधि मेरे शील, वैभव,यश, श्रेय,मेरी प्रेरणा की रक्षा का अधिकार मुझे समुचित रूप से नहीं देती वह विधि कुछ काल के लिये मुझ पर थोपी तो जा सकती है, मेरी स्वाभाविक श्रद्धा प्राप्त नहीं कर सकती।
मेरी स्वरक्षा का अधिकार सर्वोपरी है।
आप मेरे इस अधिकार का सम्मान करें, मैं आपके उसी अधिकार की रक्षा करूँगा।
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