Tuesday, 29 July 2014

यश जीवी बनें ,विजय सदैव यश लावे -जरूरी नहीं. पद  भी यश दे ही दे जरूरी नहीं.
विजय और पद प्राप्ति के साधन यदि अपवित्र रहेंगें  तो वे यश नहीं वहन करते.
यश विवेक, धर्म ,त्याग  आधारित है-  बुद्धि या प्रतिफल  ( जय -पराजय )  आधारित नहीं,संग्रह आधारित नहीं..यश हर स्थिति में निर्मल ही होता है ,रहेगा ..
पद की यात्रा की पवित्रता भी बनी रहनी चाहिये . यह सब मुश्किल हो तब भी .
यही यश का स्वरूप है .

No comments:

Post a Comment