तुम जानते हो की कोई नहीं जानता। कौन जानता है कि ये सब तुमसे अधिक और सब कुछ जानते हो और सच यह हो कि तुम्हीं कुछ नहीं जानते।
चारों ओर भ्र्म फैला रखा है। सच तक पहुंचोगे कैसे। पहुँच भी गये उसे पहचानोगे कैसे। पहचान भी गये कोई कैसे मान लेगा कि तुम सच तक पहुंचे और उसे तुमने पहचान लिया।
अनुभव बताता है कि कुछ भी छिपा नहीं रहता। सब कुछ सामने आता है , सामने ही हो सकता है - बस पहचान और पहचानने की बात रहती है। हो सकता है जानने- पहचानने के लिए अतिरिक्त श्रम, उद्यम करना पड़े। हो सकता है इसके लिये बड़े पुरुषार्थ की आवश्यकता हो।
खैर , सबसे महत्वपूर्ण है अपने बारे में जानना। जितना महत्वपूर्ण है उतना ही कठिन।
चारों ओर भ्र्म फैला रखा है। सच तक पहुंचोगे कैसे। पहुँच भी गये उसे पहचानोगे कैसे। पहचान भी गये कोई कैसे मान लेगा कि तुम सच तक पहुंचे और उसे तुमने पहचान लिया।
अनुभव बताता है कि कुछ भी छिपा नहीं रहता। सब कुछ सामने आता है , सामने ही हो सकता है - बस पहचान और पहचानने की बात रहती है। हो सकता है जानने- पहचानने के लिए अतिरिक्त श्रम, उद्यम करना पड़े। हो सकता है इसके लिये बड़े पुरुषार्थ की आवश्यकता हो।
खैर , सबसे महत्वपूर्ण है अपने बारे में जानना। जितना महत्वपूर्ण है उतना ही कठिन।
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