Saturday, 26 July 2014

नये तक चल कर जाने में मुझे झिझक नहीं होती , गिरने में भी नहीं , झुकने में भी नहीं  क्यों की मुझे उसे ऊपर उठाना है।  मेरा यही दायित्व है।
 मेरे थोड़ा गिरने से , झुकने से , उसके पास चल कर जाने से - उसका आत्मविश्वास बढ़ जाता है , एक पुरानी पीढ़ी से दूरी  तो कम हो ही जाती है , आतंक भी कम होता है , उत्साह पैदा होता है और एक संवाद का जरिया बन जाता है जो गाढ़े वक्त में संकोच तोड़ने में और खुद को उपस्थित करने में परेशानी को कम तो करत ही न है।
फिर मेरी कम्युनिकेसन स्किल का इम्तिहान भी हो जाता है , रिफ्रेश भी हो जाती है , अपडेट और अपग्रेड भी हो जाती है। सबसे बड़ी बात है हम दोनों एक दूसरे के लिये भार नहीं रह जाते , परस्पर विश्वसनीयता बढ़ जाती है , परस्पर उपयोगी हो जाते हैं।
आखिर मेरे बाद यह नया ही तो रहेगा , निरंतर नया आता रहेगा - पुराना यानी की मैं जाता ही रहूंगा,

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