कुछ साल पहले मेरे एक सीनियर ने मुझे बार बार समझाया कि केवल योग्य होने से या योग्यता होने से या श्रेष्ठ आचरण करने से अथवा बेहद अच्छी साख -काम -काज -ईमानदारी से कुछ नहीं होगा , लगना पड़ता है। मुझे विश्वास नहीं हुआ। मैं न लगा , न लगने की मेरी औकात थी , न लग ही सकता था , मन भी नहीं कहता था लगने को।
आज जब मारर्कण्डेय काटजू का कहा सामने आया तो बात स्पष्ट हुई।
मेरी समझ थी --
मालिक तो बस मौला ही होता है
सिराजुदौला की मर्जी से क्या होता है
बुलंद रहें हम अपनी निगाहों में
तुम्हारी आतिशी निगाहों से क्या होता है।
दामन हमारा , नियत हमारी
ये रहे पाक ,यही दुआ हमारी
न झुका हूँ न झुका सकेगी
तुम्हारे पास रहे बददुआ तुम्हारी।
फांकाकशी से चला था रोजे के लिये
आज तो उसने इफ्तार भेजा है
क़ाफ़िर भी एहतराम के काबिल है
मुनादी कर दो मैंने दावत ए इफ्तार भेजा है।
नमाज आज और अभी पढूंगा
कि मैंने उसे दुआ का यकीन दिलाया है
मेरी फकीरी कुछ कम कर दे, मैं फिक्रमंद सही
उसके सितम तू कम कर दे ,यही मेरी दुआ रही।
आज जब मारर्कण्डेय काटजू का कहा सामने आया तो बात स्पष्ट हुई।
मेरी समझ थी --
मालिक तो बस मौला ही होता है
सिराजुदौला की मर्जी से क्या होता है
बुलंद रहें हम अपनी निगाहों में
तुम्हारी आतिशी निगाहों से क्या होता है।
दामन हमारा , नियत हमारी
ये रहे पाक ,यही दुआ हमारी
न झुका हूँ न झुका सकेगी
तुम्हारे पास रहे बददुआ तुम्हारी।
फांकाकशी से चला था रोजे के लिये
आज तो उसने इफ्तार भेजा है
क़ाफ़िर भी एहतराम के काबिल है
मुनादी कर दो मैंने दावत ए इफ्तार भेजा है।
नमाज आज और अभी पढूंगा
कि मैंने उसे दुआ का यकीन दिलाया है
मेरी फकीरी कुछ कम कर दे, मैं फिक्रमंद सही
उसके सितम तू कम कर दे ,यही मेरी दुआ रही।
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