Monday, 21 July 2014

सोचिये ! कहीं कोई एजेंडा तो नहीं। बाकी इतनी कहानियाँ साफ साफ है - कोई मुँह क्यों नहीं खोलता ?

दिनाकरन , के जी बालकृष्णन , अशोक कुमार  के बारे में बोला जा रहा है।  काटजू बोल रहे हैं।  मुझे नहीं मालूम क्या सच क्या झूठ। क्या यह सब इन तीन के बारे में ही बोला जाना था ?
बोलिये तो पूरा बोलिये , सच बोलना ही है तो पूरा सच बोलिये , सब के बारे में सब कुछ बोलिये।
गंदगी है तो क्या इन्हीं तीन तक ?
सोचिये !
कहीं कोई एजेंडा तो नहीं।
बाकी इतनी कहानियाँ साफ साफ है - कोई मुँह क्यों नहीं खोलता ?

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