Tuesday, 15 July 2014

मैं ठहरा एक मेमना।  पर मेरे अंदर एक भेड़िया कब आ खड़ा हो ही जाता है ?
 मैं इस भेड़िये से हर बार लड़ता हूँ , लहू लुहान हो जाता हूँ।
मैंने जाना है भेड़िये के पंजों से बने घाव कैसी जलन देते हैं।
सच में भेड़िये ने कई बार मेरे गोश्त में अपने दाँत गड़ा दिये थे , बार बार वह मेरे खून का प्यासा हो मेरे कंठ को दबोच ही लेता था ----
पर हर बार हारते- हारते  मैं मेमना जीत  ही जाता हूँ।
मरते-मरते  भी जीने लगता हूँ।
-- मेरा मेमनापन शुद्ध होने के कारण अशुद्ध भेड़ियेपन पर भारी पड़ता है।

1 comment:

  1. जीत हमेशा निदोॅष मेमने की ही होगी। सत्य परेशान हो सकता है किन्तु पराजित कदापि नहीं।

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