Friday, 11 April 2014

अपनी ही कहना ,सुनना ,कहते रहना ,सुनते रहना - यह लोक नीति नहीं होती , मेरा आपका कहा  सुना , लिखा पढ़ा सब कुछ सापेक्ष होता है - मेरे सम्पूर्ण व्यक्तित्व ,कृतित्व ,यहाँ तक की मेरा विचार भी समाज द्वारा सदैव जांचा परखा जा रहा है - निरंतर .

मेरा अंतर्द्वंद छिपा थोड़े ही रहेगा . लोकमर्यादा ही निर्वहन योग्य है .

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