जो मारने की कला नहीं जानते ,हिम्मत नहीं रखते वे मर ही जाते हैं ऐसी बात तो है नहीं .और जो खूब मारते रहने को ही पुरुषार्थ समझते हैं वे विजयी हुआ ही करते हैं ऐसी बात भी तो नहीं ही है .फिर मैं मरने -मारने के खेल में क्यों रहूँ .मेरी रक्षा तो आप स्वयं करते रहे हो .
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