जिन मैदानों में दौड़े थे वे घोड़े
जिन शाखों पे डाले थे वे झूले
जहाँ खेली थी हमने कित कित
डंडे से हमने उछाली थी वो गुल्ली
सारा मैदान नापा था उसी डंडे से
जहाँ चलायी थी हमने वह कश्ती
चिकने कागज से बनाई थी कश्ती
वे कंचे अब भी कहीं रखे संभल के
पुरे मैदान में बनाई थी वो गुच्ची
जिन मैदानों में खेले थे हम नंगे
जिन शाखों से तोड़े थे हमने आम
जहाँ जमती थी हमारी बच्चा टोली
कंचा, गोली और होती थी ठिठोली
सारा मैदान दौड़ाता था वह माली
जहाँ बनाई थी हमने वह अगजा
कितने मन से बैठाई थी वह पूजा
मांग कर लाया वह बाजा ,लाईट
नाचते वक्त की वह पेंट टाईट
इन सब को आज बैठ कर खोजा
कुछ मिला नहीं , बस एक याद
जिन शाखों पे डाले थे वे झूले
जहाँ खेली थी हमने कित कित
डंडे से हमने उछाली थी वो गुल्ली
सारा मैदान नापा था उसी डंडे से
जहाँ चलायी थी हमने वह कश्ती
चिकने कागज से बनाई थी कश्ती
वे कंचे अब भी कहीं रखे संभल के
पुरे मैदान में बनाई थी वो गुच्ची
जिन मैदानों में खेले थे हम नंगे
जिन शाखों से तोड़े थे हमने आम
जहाँ जमती थी हमारी बच्चा टोली
कंचा, गोली और होती थी ठिठोली
सारा मैदान दौड़ाता था वह माली
जहाँ बनाई थी हमने वह अगजा
कितने मन से बैठाई थी वह पूजा
मांग कर लाया वह बाजा ,लाईट
नाचते वक्त की वह पेंट टाईट
इन सब को आज बैठ कर खोजा
कुछ मिला नहीं , बस एक याद
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