Sunday, 27 April 2014

मैं तो ठहरा एक कश्ति।
किनारे मुझे बर्दास्त नहीं करते।
किनारे छोड़ते ही  लहरें केवल मुझे छेड़ती रहती है ,आई, सहलाई ,मुस्कराई  और आगे बढ़ गई ,किसी को रुकने की न तो फुर्सत ,न जरुरत।
 मुझसे खेल कर इठलाती जाती इन लहरों ने मुझसे कभी मेरा हाल -चाल  नहीं पूछा।
 किनारा छोड़ने  के बाद तो इन असंख्य लहरों के बीच और अकेलापन।
और यदि इस किनारे से उस किनारे पहुंचा तो यात्री भी मुझे छोड़ चल दिया।
मुझे बिना देखे , बिना ताके  , न टा टा , न बाय बाय .
मैं अकेला एक कश्ति ,न किनारे मेरे , न लहरें , न यात्री --बस चला जा रहा हूँ!!!!!

No comments:

Post a Comment