Saturday, 12 April 2014

जीवन की प्रारंभिक रिक्तता , पहचान का न होना , आधार का ही अभाव  कितनी बार कंपकपी पैदा कर गया . अंत को  कितनी करीब से दिखा गया .उपहास की पीड़ा  बार बार दर्द देती रही .बड़े सपनों के कारण अपनों का साथ छुटता गया. अकेले चलने का दर्द बड़ा भयंकर होता है .थोडा सा चल ही लिये या कभी दौड़ने का साहस जुटा ही लिया तो इर्ष्य -बाण  के बीच जीवन को बचा पाना और कठिन लगने लगता है . 

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