Saturday, 26 April 2014

मैं अपनी सम्पूर्ण यात्रा के दौरान यात्रा -पथ पर मील के पत्थर , आगे पीछे की दिशा दर्शक निशान तथा तय की गई दुरी का वर्णन , लिखते लिखाते , लगते ,लगाते  खोंसते ,गढ़ते चला आ रहा हूँ ताकि तुम्हे आगे कुछ कम तकलीफें हो ,

कुछ एक दिए भी जला छोड़े है जो कुछ समय तक अँधेरे में भी तुम्हारी मदद करेंगें , अपनी ताकत भर एक आधार -रचना भी खडी कर दी है की तुम बैचैन नहीं हो जाओ - अब बस तुम्हें आगे की यात्रा के लिये तैयार होना है .

मेरी यात्रा के जो अंश छिपाए जाने योग्य थे ,सार्वजनिक नहीं किये जाने चाहिए थे उन्हें भी मैनें साफ सभी को बता डाला है -आगे तुम्हें स्वविवेक से काम लेना होगा .

मैं यही कह सकता  हूँ की जीवन गुनते हुए सावधानी से चला ही भला,इसके बाद भी कुछ गलतियाँ हो ही जाती है ,उन पर अटक जाना ठीक नहीं ,न ही  हो गई भूलों से निराश होना है - बस चलते चलो -

पहले की पीढ़ियों से बेहतर चलने का प्रयास करना है ,आगे वाली पीढ़ियों के लिये चलना है - खुद को एक कड़ी के रूप में जीना है , पुल बनाते हुए , बनते हुए जीना है -चलना है .

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